बिहार कांग्रेस में बगावत की खबर समय-समय पर उठती रहती है। कौन बागी है और कौन वफादार, यह तय करना मुश्किल है। बागी और वफादारों की सूची भी मीडिया में आती रही है। कांग्रेस विधायकों के परस्पर विरोधी बयान भी आते रहे हैं। कोई भाजपा के नाद में मुंह डालने की जुगाड़ कर रहा है तो कोई जदयू के नाद में। लेकिन वास्तविकता यह है कि कांग्रेसी विधायकों को न भाजपा घास डाल रही है, न जदयू अपने खूंटा की ओर फटकने दे रहा है।
वीरेंद्र यादव
महागठबंधन टूटने के बाद कांग्रेसी विधायकों को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। कांग्रेस के नाम पर कोई विधायक फिर लौट पाएगा, यही किसी को विश्वास नहीं है। गठबंधन के लिए सिर्फ राजद ही बचता है। लेकिन अधिकतर कांग्रेसी विधायकों का जातीय चरित्र राजद के मन-मिजाज से मेल नहीं खाता है। इसके कई सामाजिक और राजनीतिक कारण मौजूद हैं। कांग्रेस के 27 में से 11 विधायक सवर्ण जाति के हैं, जिन्हें भाजपा का जातीय चरित्र ज्यादा पसंद आता है। 6 मुसलमान विधायक कांग्रेस को छोड़ने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि उन्हें नीतीश का ‘नया चेहरा’ विश्वसनीय नहीं लगता है। एसटी-एससी के 6 विधायकों की राजनीतिक भाग्य भरोसे ही चलती है। वे ज्यादा मुखर भी नहीं हैं। दो यादव विधायकों की वफादारी लालू यादव से बंधी हो, यह भी तय नहीं है। दो कुर्मी व कुशवाहा विधायक नीतीश से खुद को करीब मानते हैं।
कांग्रेस के अधिकतर विधायक भाजपा और जदयू में अपनी जमीन तलाश रहे हैं। लेकिन भाजपा व जदयू अभी हड़बड़ी में नहीं है। संभव भी नहीं है। क्योंकि पार्टी तोड़ने के लिए 18 विधायकों की जरूरत है, जिसे एकजुट करना किसी के लिए संभव नहीं है। लालू विरोध के नाम पर कांग्रेस में हो रही गोलबंदी भाजपा या जदयू समर्थन के नाम पर बिखर जा रही है। यही कारण है कि हर बार बगावत की आंच मंद पड़ जाती है। फिलहाल कांग्रेस में टूट के इंतजार कर रही राजनीतिक पार्टियों को इंतजार ही करना पड़ेगा। आखिरकार विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी भी मूलत: कांग्रेसी ही हैं।