राजस्थान में पाकिस्तान की सीमा से लगे देश के सबसे बड़े निवार्चन क्षेत्र बाडमेर की चुनावी जंग पूरी दुनिया की नजर लगी है। यहां से भारतीय सेना के दो पूर्व अधिकारियों के आमने -सामने आने हैं.
रमेश सर्राफ धमोरा
इस सीट पर खास बात यह है कि यहां से दोनों प्रमुख उम्मीदवार अपनी-अपनी मूल पार्टी को छोड़ कर चुनाव लड़ रहें हैं।
भाजपा में कभी बाजपेयी व आडवानी के बाद तीसरे नम्बर के नेता माने जाने वाले जसवंत सिंह को भाजपा से टिकट नहीं मिलने के कारण निर्दलिय चुनाव मैदान में उतरना पड़ा है वहीं कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे कर्नल सोनाराम भी कांग्रेस छोड़ कर भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहें हैं।
कहने को तो यहां से कांग्रेस के मौजूदा सांसद व कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव हरीश चौधरी भी चुनाव मैदान में मुकाबले को तिकोना बनाने का प्रयास कर रहा हैं मगर वो मुख्य मुकाबले में दोनो फौजियो के सामने कहीं टिकते नजर नहीं आते दिख रहें हैं। यहां से कुल 11 प्रत्यासी चुनाव लड़ रहें हैं।
भाजपा से पांच बार राज्यसभा व चार बार लोकसभा सदस्य,अटलबिहारी बाजपेयी की सरकार में वित्त,विदेश रक्षा मंत्री,योजना आयोग के उपाध्यक्ष व 2004 से 2009 तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे जसवंत सिंह वर्तमान में बंगाल के दार्जिलिंग से सांसद हैं.
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे से उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा था। वसुन्धरा किसी भी कीमत पर जसवंत सिंह को राजस्थान की राजनीति में नहीं आने देना चाहती थी। जसवंत सिंह एक समय वसुन्धरा विरोधी नेताओं का नेतृत्व करते रहे थे। एक पोस्टर पर छपी वसुन्धरी की फोटो को लेकर तो जसवंत सिंह की पत्नी शीतल कंवर ने पुलिस थाने में वसुन्धरा पर मुकदमा तक दर्ज करवा दिया था। इन सब बातों को भुलाकर गत विधानसभा चुनाव में बसुन्धरा राजे ने शिव से विधायक रहे जालिम सिंह रावलोत का टिकट काट कर जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र सिंह को विधायक बनवा दिया था। मगर वो जसवंत सिंह को किसी भी कीमत पर राजस्थान नहीं आने देना चाहती थीं।
जसवंतसिंह ने भाजपा के समक्ष इच्छा जाहिर की थी कि वो अपने घर बाड़मेर से चुनाव लडऩा चाहते हैं। उनकी इस इच्छा के सामने बकौल जसवंत, वसुंधराराजे आड़े आ गई और टिकट काट दिया। नाराज होकर निर्दलीय नामांकन दाखिल करने वाले जसवंतसिंह को मनाने राष्ट्र या राज्य स्तर का कोई भाजपा का वरिष्ठ नेता नहीं आया है लेकिन प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधराराजे ने उन्हें घर में ही घेरने की राह पकड़ ली।
मिशन पच्चीस व नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने में जुटी वसुन्धरा राजे की नजर बाडमेर में कांग्रेस के प्रभावशाली जाट नेता कर्नल सोनाराम चौधरी पर टिकी थी क्योंकि 2009 के लोकसभा चुनाव में जसवंत सिंह के पुत्र मानवेन्द्र को भाजपा का टिकट दिया गया था मगर वे हार गये थे। मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे का मानना है कि जाट मतदाताओं की बहुलता वाले बाडमेर से भाजपा जाट को टिकट देकर आसानी से जिता सकती है।
कर्नल सोनाराम
कांग्रेस नेता अशोक गहलोत से नाराज चल रहे कर्नल सोनाराम पिछला विधानसभा चुनाव हार गये थे। कांग्रेस से उन्हे लोकसभा टिकट मिलना मुश्किल लग रहा था ऐसे में उन्हे वसुन्धरा राजे के सहयोग से भाजपा में शामिल कर टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया गया। कर्नल सोनाराम को टिकट देने पर जसवंत सिंह ने भाजपा से बगावत कर निर्दलिय चुनाव में उतर गये।
जसवंत सिंह ने कहा कि कई इन्य दलों के नेताओ मुलायमसिंह, आजम खां, नीतिश कुमार, ममता बनर्जी आदि ने मुझे फोन किए हैं। ये फोन पारस्परिक संबंधो के कारण किए गए। उन्होने यह भी माना कि लालकृष्ण आडवाणी से भी उनकी पारस्परिक संबंधो के रूप मे बातचीत हुई है। उन्होने इस बात से इनकार किया कि वे किसी अन्य पार्टी मे शामिल होने की इच्छा रखते हैं। जब कभी भी ऐसा करने की नौबत आएगी तो बाड़मेर-जैसलमेर क्षेत्र की जनता से पूछकर ही कदम उठाएंगे।
भाजपा से बगावत करने के सवाल पर सिंह ने कहा कि यह बगावत नहीं है। भाजपा के आदर्शो व अधिकारो के लिए लड़ रहा हूं। आलाकमान को अब भी सोचने की जरूरत है। समझ मे नहीं आ रहा कि पार्टी रोज कांगे्रस से नेता शामिल करती जा रही है। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर उन्होने कहा कि यह तो राष्ट्र तय करेगा। मन को विशाल रखने वाला व्यक्ति ही प्रधानमंत्री बनने के काबिल है।
जसवंत सिंह का कहना है कि मेरा टिकट काट कर कांग्रेस से आये कर्नल सोनाराम को क्यों दिया गया? जबकि बाडमेर संसदीय क्षेत्र के लोगों का कहना है कि जसवंत सिंह कभी बाडमेर से सांसद रहें ही नहीं तो उनका टिकट कटा कहां हैं। लोगों का कहना है कि जसवंत सिंह जोधपुर,चित्तोडग़ढ़ व दार्जिलिंग से लोकसभा में गये है या राज्य सभा के सांसद रहें हैं। जब वे केन्द्र में प्रभावशाली विभागों के मंत्री थे तो बाडमेर-जैसलमेर के विकास के लिये क्या काम किया। उस वक्त तो वे दूसरे क्षेत्रों में भटकते रहे थे अब जब उनके हर जगह से रास्ते बन्द हो गये तो उन्हे बाडमेर की याद आयी है।
अब देखना यह है कि इस बार की चुनावी जंग में कौन से फौजी की जीत होती है। 1971 के भारत पाक युद्व में पूर्वी मोर्चे पर पाकिसतान से जंग लड़ चुके कांग्रेस छोडक़र भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे कर्नल सोनाराम मैदान मारते हैं या भाजपा से बगावत कर मैदान में उतरे जसवंत सिंह बाडमेर से अपने जीवन का अन्तिम चुनाव जीतते हैं,इसका पता तो चुनावी परिणामों के बाद ही पता लग पायेगा मगर बाडमेर में इस बार का चुनाव राजनीति की ऐक नई इबारत जरूर लिखेगा।