प्रणय प्रिंयवद आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव व्यास जी के साथ उफनती गंगा की लहरों में चार घंटे बिताये तो उन्होंने गंगा के गुस्सा के साथ राम प्रयाग की मस्ती भी देखी.
हम गंगा की बाढ़ में फंसे लोगों को देखने तीन दिसंबर को निकले. दानापुर के नारियल घाट से उस दियारा के लिए निकले जहां कई गांव गंगा में डूब चुके हैं. कई गांवों में पानी अब तब घुसने को बेताब है. गंगा की धारा में एनडीआरएफ की टीम के साथ निकलने से पहले हमें और हमारे कैमरा मैन सिंधु मनीष को लाइफ सेविंग जैकेट पहनाया गया. गंगा की धारा का तेज बहाव पश्चिम से पूरब की ओर. जैसे हमारी बोट को खींच कर खुद में समा लेने को बेताब गंगा. लेकिन हम आगे बढ़ते गए. हम दानापुर से निकले तो सबसे पहले पानापुर के कई टोलों से होकर गुजरे.
कई टोले गंगा में पूरी तरह डूब चुके हैं. कुछ पेड़ों की फुनगियां दिख रही हैं सिर्फ. कई पेड़ तो पूरी तरह डूब गए हैं. हम आगे बढ़े और फिर बड़का और छोटका कासिमचक, पतलापुर होते हुए गुजरे. गांव का किनारा जहां गंगा की बाढ़ मिट्टी को लगातार काट रही है वहां लोग खड़े दिखे. खूब सारे बच्चे और महिलाएं टकटकी लगाए. हरशामचक में एक बुजुर्ग ने हमें बताया कि विशनपुर, जाफरपुर,काफरपुर, बंगलापर, हाबसपुर, शंकर पुर, अगलगिया, छित्तरचक, मानन सब डूब गया है. हमने हरशामचक के लोगों से पूछा- आप राहत शिविर में क्यों नहीं जा रहे? जवाब मिला- कहां जाएं सर माल-जाल सब छोड़कर ? सवाल का जवाब सवाल से देते हुए तमाम लोगों की आंखें जैसे भर आयीं.
सब के चेहरे पर दुख का एक जैसा भाव हमें दिखा. दुखों के पहाड़ को जैसे हर आदमी यहां काट रहा है. एक गर्भवती सहित छह-सात बीमार लोग अस्पताल जाने को तैयार हो गए. इन सभी को दियारा से दानापुर लाया गया और फिर एबुंलेंस से अस्पताल भेजा गया.
रामप्रयाग महतो से मिलिए-
ये रामप्रयाग महतो हैं. कासिमचक बिन्दटोली में हमने इन्हें देखा. एक लुंगी शरीर पर बस. चारों ओर जहां एक तरफ गंगा का गुस्सा है और वे जहां खड़े हैं छप्पर पर उसके नीचे भी पानी ही पानी झोपड़ी के अंदर से बहती हुई गंगा…दूसरी तरफ वे छप्पर पर खटिया डाल कर उस पर बैठे हैं. वाह क्या ठाठ है. हमें देखा तो खड़े हो गए. हमने देखा खटिया पर एक रेडियो भी है. हालात ऐसे हैं कि गंगा का गुस्सा इनकी झोपड़ी सहित इन्हें कब बहा ले जाएगा किसी को नहीं मालूम. लेकिन वे टिके हैं. आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव व्यास जी ने उनसे आग्रह किया कि चलिए शिविर में चलिए. हाथ जोड़ते हुए इस आग्रह का जवाब उन्होंने हाथ जोड़ कर दिया और कहा सब माल जाल कौन जोगेगा ? मुझे रहने दीजिए यहीं. मैं यहां ठीक हूं. पानी घट जाएगा.
हमने पूछा रात में भी यहीं रहते हैं? जवाब मिला हां सर. आपदा प्रबंधन विभाग की टीम ने रामप्रयाग महतो को एक बोरा चूड़ा और गुड़ दिया. रामप्रयाग महतो को देख ऐसा लगता है इन्होंने गंगा की बाढ़ को खुद के भीतर समा लिया है. गंगा में बाढ़ की आवाज है और वो आवाज दिन क्या रात में भी इन्हें क्यों नहीं डराती इसका जवाब मेरे पास नहीं. बाढ़ में गुस्से का पानी भरा है और एक पानी है रामप्रयाग महतो के भीतर का. कितने कड़े पानी वाला इंसान है ये सोचिए. सब पानी पर भारी.
तीन बार हमारी बोट गंगा की बाढ़ में फंसी. एनडीआरएफ की टीम ने उतरकर बोट को खींचा. बोटें जब फंसी तो हमारा कलेजा भी मुंह को आया. लेकिन एनडीआरएफ के जवानों ने हमें हर बार बाहर निकाल लिया. एक बार तो बोट में हवा भरने की भी नौबत आयी. कई बार बोट के आगे के पंखे में लंबे खर-पतवार फंसे जिसे निकाला गया
गंगा की उफनती लहरों पर चार पांच घंटे रहना इतना आसान नहीं. हमारे सिर में चक्कर आने लगा और चारों ओर की चीजें घूमती नजर आने लगी. ऑफिस पहुंचा तो लगने लगा सिर फट जाएगा. कई खबरें लिखनी पड़ी. घर लौटा तो रात भर नींद नहीं आई. सिर में दर्द तब कम हुआ जब पारासिटामोल रात के दो बजे खाया. सोचता रहा कितना कठिन है बाढ़ के बीच जीना. कितना मुश्किल है बाढ़ में बचना, मां- बाप, भाई, बच्चे और पत्नी को बचाकर रखना.
(लेखक वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं)
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