जेएनयू पुलिस कारर्वाई पर बायस्ड रिपोर्टिंग कर दुनिया भर में अपमानित होने वाले जी न्यूज को एक और करारा तमाचा लगा है. इस चैनल के पत्रकार ने चैनल की नौकरी को लात मारते हुए जी न्यूज के अंदर का सडड़ांध बाहर निकालने का साहस किया है.zee

विश्वदीपक ने इस्तीफे के बाद जो पत्र लिखा है वह सोशल मीडिया पर वॉयरल हो चुका है. इस पत्र को लोग अपने मोबाइल पर शहर के नुक्कड़ों, चौराहों पर सामुहिक पाठ कर रहे हैं और विश्वदीपक के साहस की बड़ाई कर रहरे हैं. वह फेसबुक पर जनसत्ता के पूर्व सम्पादक ओम थानवी ने भी विश्वदीपक के हौसले की तारीफ की है. थानवी कहते हैं वह जिस साहस और प्रतिरोध साथ वे निकले हैं उससे पत्रकारिता में नैतिक स्वर के कहीं बने रहने की उम्मीद बनती है.

विश्वदीपक ने अपने इस्तीफे में लिखा है . JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार के बहाने शुरू किए गए अंध राष्ट्रवादी अभियान और उसे बढ़ाने में हमारी भूमिका के विरोध में मैं अपने पद से इस्तीफा देता हूं. वह लिखते हैं- मई 2014 के बाद से जब से श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से कमोबेश देश के हर न्यूज़ रूम का सांप्रदायीकरण (Communalization) हुआ है लेकिन हमारे यहां स्थितियां और भी भयावह हैं. आखिर ऐसा क्यों होता है कि ख़बरों को मोदी एंगल से जोड़कर लिखवाया जाता है ? ये सोचकर खबरें लिखवाई जाती हैं कि इससे मोदी सरकार के एजेंडे को कितना गति मिलेगी ?हमें गहराई से संदेह होने लगा है कि हम पत्रकार हैं. ऐसा लगता है जैसे हम सरकार के प्रवक्ता हैं या सुपारी किलर हैं? मोदी हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं, मेरे भी है; लेकिन एक पत्रकार के तौर इतनी मोदी भक्ति अब हजम नहीं हो रही है ? मेरा ज़मीर मेरे खिलाफ बग़ावत करने लगा है. ऐसा लगता है जैसे मैं बीमार पड़ गया हूं.

हर न्यूज़ में मोदी को महान बताने की कोशिश

हर खबर के पीछे एजेंडा, हर न्यूज़ शो के पीछे मोदी सरकार को महान बताने की कोशिश, हर बहस के पीछे मोदी विरोधियों को शूट करने की का प्रयास ? अटैक, युद्ध से कमतर कोई शब्द हमें मंजूर नहीं. क्या है ये सब ? कभी ठहरकर सोचता हूं तो लगता है कि पागल हो गया हूं.

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लगूंगा तो कई पन्ने भर जाएंगे. मैं जानना चाहता हूं कि पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांत ‘तटस्थता’ का और दर्शकों के प्रति ईमानदारी का कुछ तो मूल्य है, कि नहीं ?

मुझे ठीक से नींद नहीं आ रही है. बेचैन हूं मैं. शायद ये अपराध बोध का नतीजा है. किसी शख्स की जिंदगी में जो सबसे बड़ा कलंक लग सकता है वो है – देशद्रोह. लेकिन सवाल ये है कि एक पत्रकार के तौर पर हमें क्या हक है कि किसी को देशद्रोही की डिग्री बांटने का ? ये काम तो न्यायालय का है न ?

 

आरएसएस का मुख्यपत्र

क्या हम बीजेपी या आरएसएस के मुखपत्र हैं कि वो जो बोलेंगे वहीं कहेंगे ? जिस वीडियो में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा था ही नहीं उसे हमने बार-बार हमने उन्माद फैलाने के लिए चलाया. अंधेरे में आ रही कुछ आवाज़ों को हमने कैसे मान लिया की ये कन्हैया या उसके साथियों की ही है? ‘भारतीय कोर्ट ज़िंदाबाद’ को पूर्वाग्रहों के चलते ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ सुन लिया और सरकार की लाइन पर काम करते हुए कुछ लोगों का करियर, उनकी उम्मीदें और परिवार को तबाही की कगार तक पहुंचा दिया. अच्छा होता कि हम एजेंसीज को जांच करने देते और उनके नतीजों का इंतज़ार करते.

लोग उमर खालिद की बहन को रेप करने और उस पर एसिड अटैक की धमकी दे रहे हैं. उसे गद्दार की बहन कह रहे हैं. सोचिए ज़रा अगर ऐसा हुआ तो क्या इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी ?

 

एफआईआर में जी न्यूज का संदर्भ

विश्वदीपक कहते हैं कि हो सकता है कि हम इनकी राजनीति से असहमत हों या इनके विचार उग्र हों लेकिन ये देशद्रोही कैसे हो गए ? कोर्ट का काम हम कैसे कर सकते हैं ? क्या ये महज इत्तफाक है कि दिल्ली पुलिस ने अपनी FIR में ज़ी न्यूज का संदर्भ दिया है ? ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली पुलिस से हमारी सांठगांठ है ? बताइए कि हम क्या जवाब दे लोगों को ?

आखिर जेएनयू से या जेएनयू के छात्रों से क्या दुश्मनी है हमारी ? मेरा मानना है कि आधुनिक जीवन मूल्यों, लोकतंत्र, विविधता और विरोधी विचारों के सह अस्तित्व का अगर कोई सबसे खूबसूरत बगीचा है देश में तो वो जेएनयू है लेकिन इसे गैरकानूनी और देशद्रोह का अड्डा बताया जा रहा है.

 

ऊपर से आते हैं खबर बनाने के हुक्म

मैं ये जानना चाहता हूं कि जेएनयू गैर कानूनी है या बीजेपी का वो विधायक जो कोर्ट में घुसकर लेफ्ट कार्यकर्ता को पीट रहा था ? विधायक और उसके समर्थक सड़क पर गिरे हुए CPI के कार्यकर्ता अमीक जमेई को बूटों तले रौंद रहे थे लेकिन पास में खड़ी पुलिस तमाशा देख रही थी. स्क्रीन पर पिटाई की तस्वीरें चल रही थीं और हम लिख रहे थे – ओपी शर्मा पर पिटाई का आरोप. मैंने पूछा कि आरोप क्यों ? कहा गया ‘ऊपर’ से कहा गया है ? हमारा ‘ऊपर’ इतना नीचे कैसे हो सकता है .

By Editor