आज सुबह साईकिल से ‘वीरेंद्र यादव न्यूज’ का अक्टूबर अंक बांटने के लिए निकला था। अशोक चौधरी, सुशील मोदी, नीतीश कुमार, अंजनी कुमार सिंह के आवास तक पत्रिका पहुंचाकर लालू यादव के आवास पर पहुंचे। लालू के दरबार में मिलने वालों के लिए दरवाजा खुला था। हम भी दरबार में पहुंच गये। मजमा लगा हुआ था। मजमा छंटा तो हमने अपनी पत्रिका दी और वहीं सामने की कुर्सी पर बैठ गये। करीब एक घंटे के ‘दरबारवास’ में प्रधानमंत्री की पटना यात्रा से लेकर लालू यादव की ‘सीबीआई यात्रा’ की खूब चर्चा हुई।
वीरेंद्र यादव
दरबार-ए-हाल
लालू यादव ने कहा- हम तो चाहते हैं कि बार-बार सीबीआई वाला बुलाये। बढि़या नाश्ता मिलता है। खूब स्वागत करता है। खैनी भी खिलाता है। एक अधिकारी कह रहा था कि अभी आपको बुला रहे हैं, बाद में उनलोगों को बुलाएंगे। केस में कोई दम है। खाली परेशान कर रहा है। बालू के कारोबार से जुड़े लोगों की शिकायत पर लालू ने कहा- उ (नीतीश) समझता है कि बालू के कारोबार से सिर्फ यादवे जुड़ा हुआ है। यादव के कमर को तोड़ना चाहता है। उसको पते नहीं है कि मल्लाह, नोनिया, बिंद समेत कई जाति के मजूदरों का परिवार बालू के कारोबार से चलता है।
इस बीच लालू यादव बाल कटवाने के लिए बैठते हैं। नाई अपने काम में जुटा है। इस दौरान लालू कहते हैं- गजब का मूर्ख बनाया है। दोनों मिलकर बिहार की जनता को बेवकूफ बना रहा है। राजभवन मार्च में शामिल छात्रों को लाठी से पिटवाया है। जिसके वोट से सत्ता में आया, उसे ही पिटवा रहा है। बात आगे बढ़ती जा रही थी। इस बीच एक नेता टुभुकते हैं- हम भईया को एक दिन पहले ही कह दिये थे कि कल नीतीश इस्तीफा दे देंगे। अशोक चौधरी यहां की वहां करते थे। दिलीप चौधरी दिनभर यहीं बैठते थे। यहां की बात अशोक चौधरी से कहते थे और फिर अशोक चौधरी वहां (नीतीश के पास) पहुंचाते थे।
बातचीत के दौरान ही पार्टी के कई पदाधिकारी दरबार में हाजिर होते हैं। संगठनात्मक चुनाव पर चर्चा होती है। लालू पूछते हैं- सभी प्रक्रिया पार्टी संविधान के अनुसार हो रहा है न। सब ठीक रखिएगा। पता नहीं, कब चुनाव की घोषणा कर दे। तैयार रहिएगा। कुछ जरूरत होगी तो बताइएगा। करीब एक घंटे में कई मुद्दों पर चर्चा हुई। पार्टी के कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक से बातचीत में कोई हड़बड़ी नहीं। एकदम निश्चिंत। एक कार्यकर्ता से लालू ने कहा- तू तो रैली नहीं आया था। उन्होंने सफाई दी- सर, हमलोग नाव से आये थे। नाव पर खाने-पीने की व्यवस्था किये थे। दियारा के कुछ कार्यकर्ताओं से पूछा कि नदी में पानी है कि टीला निकल गया है। कौन सा फसल बोये हो।
लालू यादव सत्ता में थे तब भी और जब सत्ता में नहीं हैं तब भी, संवाद की शैली में कोई परिवर्तन नहीं। दरबार में पहुंचना पहले की अपेक्षा ज्यादा सहज हो गया है। यह भी संयोग ही है कि भाजपा के साथ सत्ता में नीतीश कुमार सहज महसूस कर रहे हैं और ‘सत्ताविहीन’ लालू से मिलने अब कार्यकर्ता सहज महसूस कर रहे हैं। यानी नीतीश की ‘सत्ता’ और लालू के ‘कार्यकर्ता’ दोनों सहजता से लबालब हैं।