एडिटोरियल डेस्क, नौकरशाही डॉट कॉम
ये हस्तक्षेप सुप्रीम कोर्ट और बिहार के राज्यपाल की तरफ से हुए हैं. राज्यपाल ने जहां सीएम को पत्र लिखा है वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वत:संज्ञान ले लिया है.
1. बिहार के राज्यपल ने चिट्ठी लिख कर मुख्यमंत्री को पहले पैराग्राफ में तीरीफ का पुल बांधा है. उन्हें कुशल प्रशासक, और दूरदर्षी स्टेट्समैन तक कहा है. पर नीचे के पैरा में राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने प्यारी भाषा में चेतावनी देते हुए कहा है कि ऐसे तमाम मालों की मॉनिटरिंग हो ताकि भविष्य में ऐसी वारदात न होने पाये.
2. सुप्रीम कोर्ट ने स्वत:संज्ञान लेत हुए इस मामले में नीतीश सरकार से जांच के स्टेटस के बारे में जवाब तलब कर लिया है.
ये दोनों बिहार सरकार की दुखती रगों पर हाथ डालने जैसा है. राज्यपाल का पत्र लिखना यह साबित करता है कि वह इस मामले से खासे नाराज हैं. भले ही राज्यपाल एक गैरराजनीतिक पद है पर उनकी इस नारजगी को केंद्र सरकार व भाजपा की नारजगी से जोड़ कर देखना चाहिए.
वहीं सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में दखल देना, यह साबित करता है कि भले ही जांच सीबीआई कर रही है, पर उसकी मानिटरिंग अदालत खुद करने के लिए खुद से आगे आ गयी है.
केंद्र की सरकार व भाजपा के लिए, लगता है कि नीतीश कुमार के खिलाफ एक और हथियार मिल गया है. अगर जांच सही तरीके से आगे बढ़ती गयी, और जदयू कोटे की समाज कल्याण मंत्री तक जांच की आंच पहुंची तो यह नीतीश सरकार के लिए कठिन चुनौती बन जायेगी.
मुजफ्फरपुर बलात्कार मामले की जांच आगे बढ़ते हुए आईपीआरडी यानी सूचना एंव जनसम्पर्क विभाग तक पहुंच सकती है. यही वह विभाग है जो बलात्कार कांड का आरोपी ब्रजेश ठाकुर के अखबारों को करोड़ों का विज्ञापन देता रहा है. और इसी बूते ब्रजेश के रसूख ऊपर तक रहा है.
गौर कीजिए कि आईपीआरडी महकमा के मंत्री 2005 से अब तक ( कुछ समय तक छोड कर) खुद नीतीश कुमार रहे हैं.