जदयू के वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार अपने बिखरे कुनबे को समेटने की तैयारी में लग गए हैं। 17 से 24 सिंतबर तक वह जातीय व संगठन के नेताओं और कार्यकर्ता से अलग-अलग बैठकर रहे हैं। इस दौरान हार के कारणों की समीक्षा, आगे की रणनीति और गठबंधन की राजनीति पर मंथन कर रहे हैं। इस संदर्भ में बड़ी-बड़ी बैठकों का दौर चल रहा है। समता पार्टी के दौर के साथियों की तलाश की जा रह है, जिनके सहारे कई वर्षों तक नीतीश कुमार ने लालू यादव के खिलाफ अभियान चलाया था।
बिहार ब्यूरो प्रमुख
पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सरकारी आवास सात सर्कुलर रोड में ये बैठकें हो रही है। बड़ी संख्या में विश्वस्थ और कार्यकर्ता जुट रहे हैं। सभी को हार का मलाल है और अतीत की संभावनाओं से उत्साहित हैं। नीतीश कुमार ने बैठक की शुरुआत कुशवाहा नेताओं के साथ बैठक से की थी। इसमें कुशवाहा जाति के लोगों का मन टटोलने की कोशिश की गयी। उपेंद्र कुशवाहा के प्रभाव का भी आकलन किय गया। उसके बाद जाति व जिलों के हिसाब से बैठकों का दौर निरंतर जारी है। संभव है कि नीतीश कुमार दशहरा के बाद एक बार फिर यात्रा पर निकल सकते हैं।
लेकिन नीतीश की यह कवायद क्या राजद व कांग्रेस को स्वीकार होगा। पार्टी का आधार बढ़ाना नीतीश कुमार का अधिकार है और उनकी पहल निराधार भी नहीं है। लेकिन राजद व कांग्रेस का अप्रत्यक्ष विरोध से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। इन विरोधों को हम दरकिनार कर दें तो भी यह सवाल है कि क्या पार्टी का संगठन ऐसी किसी यात्रा के लिए तैयार है। नीतीश कुमार जनाधार के संकट के साथ आर्थिक संकट के दौर से भी गुजर रहे हैं। इसका समायोजन भी उनके लिए चुनौती है। केंदीय राजनीति में प्रभाव कम होने के बाद व्यापारिक घरानों से बड़ी पूंजी का सहयोग मिलना अब संभव नहीं दिखता है। वैसे में नीतीश के लिए विकल्प की तलाश भी चुनौती है। कुल मिलाकर बैठकों के मंथन से नीतीश कुछ खास हासिल करने की कवायद कर रहे हैं, पर क्या निकलता है, यह 25 सिंतबर के बाद ही पता चलेगा।