इर्शादुल हक—
कोई पैसे के अभाव में गरीब होता है. कोई पैसा होते हुए भी संसाधनहीन होता है. दोनों स्थितियां खतरनाक हैं. पर इन दोनों में खतरनाक है दूसरी स्थिति. बिहार के प्रशासनक तंत्र का यही हाल है.
यह वही बात हुई जैसे हमारे पास पैसे तो हैं पर रोटी और दीगर संसाधनों के लिए तड़पते रहें.पिछले कई सालों से बिहार, पैसे होते हुए भी उसे इस्तेमाल कर पाने में नाकाम होता रहा है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसको लेकर काफी चिंतित हैं. आज की तारीख में यही चिंता उनकी बड़ी चुनौति भी है. मंगलवार को सभी विभागों की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने नौकरशाहों को अपनी चिंता बता दी.
राज्य सरकार को इस वित्तीय वर्ष में 28 हजार करोड़ रुपये का इस्तेमाल करना है. पर बिते छह महीने में केवल 20 प्रतिशत यानी मात्र पांच हजार करोड़ रुपये ही खर्च हुए हैं. मतलब साफ है. अगले छह महीने में राज्य के नीतिनिर्माताओं को 80प्रतिशत पैसों का इस्तेमाल करना है.
हमें इसे बात की कोई उम्मीद नजर नहीं आती कि राज्य सरकार अगले छह माह में बाकी 22-23 हजार करोड़ रुपये खर्च कर पायेगी. हमारे इस दावे का आधार यह है कि जो प्रशासनिक तंत्र साल के आधे समय में मात्र 20 प्रतिशत पैसे खर्च कर पाया हो, वह अगले आधे साल में 80 प्रतिशत कैसे कर पायेगा.
हमें इसे बात की कोई उम्मीद नजर नहीं आती कि राज्य सरकार अगले छह माह में बाकी 22-23 हजार करोड़ रुपये खर्च कर पायेगी. हमारे इस दावे का आधार यह है कि जो प्रशासनिक तंत्र साल के आधे समय में मात्र 20 प्रतिशत पैसे खर्च कर पाया हो, वह अगले आधे साल में 80 प्रतिशत कैसे कर पायेगा.
पिछले छह सात वर्षों में, सरकार के लाख चाहने के बावजूद बिहार की नौकरशाही कभी भी बजट के पूरे पैसे का इस्तेमाल नहीं कर पायी है. पिछले वित्त वर्ष में सरकार बमुश्किल 70 प्रतिशत रकम खर्च कर सकी थी. इस से पहले के वित्तीय वर्ष की हालत भी यही थी. और फिर उस वित्तीय वर्ष से पहले वाले वर्ष का भी यही हाल था.
हालांकि योजना और विकास विभाग के प्रधानसचिव विजय प्रकाश ने उनसे कहा कि तमाम विभागों को 80 प्रतिशत राशियों का आवंटन कर दिया गया है. पर मुख्यमंत्री को मालूम है कि राशियों के आवंटन और उन्हें खर्च करने में कोई संबंध नहीं है.
राज्य के प्रशासनिक तंत्र के इस नाकारेपन को दूर करने के लिए सरकार को काफी मशक्कत करने की जरूरत है.
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