15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन. के. सिंह ने कहा कि संसाधनों के बंटवारे के मुद्दे को लेकर बिहार की मांगों पर पूरी सहानुभूति के साथ विचार किया जायेगा। श्री सिंह ने यहां एशियाई विकास शोध संस्थान (आद्री) की ओर से ‘अंतरराज्यीय और अंतरजिला विषमता’ पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि 15वां वित्त आयोग बिहार की समस्याओं तथा परिस्थतियों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने के बाद ही केन्द्र को अपनी अनुशंसा देगा।
उन्होंने बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी के बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की वकालत पर कहा कि जब वह स्वयं बिहार योजना पर्षद् में तथा राज्यसभा के सदस्य थे तब उस समय उनके भी इसी तरह के विचार थे, उनके विचार में अभी भी कोई परिवर्तन नहीं आया है लेकिन उनकी क्षमता में जरूर परिवर्तन आया है। आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि प्रथम वित्त आयोग का गठन वर्ष1952 में हुआ था और उसे व्यवहार न्यायालय के अधिकार दिये गये थे ताकि राज्य अपनी मांगें वित्त आयोग के समक्ष रख सकें। वित्त आयोग को जटिल समस्या से जूझना पड़ रहा है क्योंकि संसाधन तो वही हैं और राज्य की मांगों को भी पूरा करना है।
उन्होंने कहा कि नेपाल से निकलने वाली नदियों के कारण बिहार को प्रतिवर्ष भीषण बाढ़ की समस्या से जूझना पड़ रहा है लेकिन भौगोलिक स्थिति को बदला नहीं जा सकता। सिंह ने कहा कि वित्त आयोग नीति आयोग के कार्यकलाप पर टिप्पणी नहीं कर सकता। नीति आयोग अभी दूसरे रूप में काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि योजना आयोग के समाप्त हो जाने के बाद वित्त आयोग केन्द्र की विभिन्न योजनाओं पर हो रहे खर्च का भी मूल्यांकन कर रहा है।
आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि यह देखने की आवश्यकता है कि इतने सारे केन्द्र प्रायोजित कार्यक्रमों का चलना और उन पर राशि खर्च किये जाने की क्या आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मध्याह्न भोजन योजना को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत लाया गया जबकि मनरेगा को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत लाया गया और अब स्वास्थ्य अधिकार की बात हो रही है।