बिहार के आसिफ दाऊदी गरीबी और तंगहाली से निकल कर अरब में किंग अब्दुल अज़ीज़ यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक बन गये लेकिन वह अपने गृहराज्य में भी शिक्षा की लौ जलाये हुए हैं.
एमजे वारसी
ज मैं ऐसे ही एक नौजवान की बात करने जा रहा हूँ जिसे मैं केवल एक महीने या एक साल नहीं बल्कि पिछले बीस सालों से जानता हूँ. दर असलाल आज मैं आप सब को सासिफ़ रमीज़ दाऊदी के बारे में बताना चाहता हूँ.जिनसे मैं अलीगढ़ में मिला था.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हम लोगों ने एक साथ पढ़ाई की. आसिफ़ मुझ से जूनियर था और वहीँ से उसने अंग्रेजी में बी ए और एम ए की शिक्षा प्राप्त की है.
चूँकि हम दोनों बिहार से ही थे और निम्न मध्य वर्ग पारिवारिक परिवेश से आते थे इसलिए अक्सर बिहार की आर्थिक, राजनितिक और सामाजिक विषय पर अक्सर चर्चा होती रहती थी. उसकी बिहार के विकास के प्रति सोच और समाज को आगे ले जाने की चाहत से हम बहुत ही अधिक प्रभावित हुए.
सबकी मदद
अपने छात्र जीवन से ही एक अच्छे वक्ता के रूप में आसिफ़ ने अपनी पहचान बना ली थी. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से निकलने के बाद कुछ समय आसिफ के लिए बहुत ही संघर्षमय रहा है. एक कमज़ोर आर्थिक परिवार से आने के नाते अपने जीवन में आसिफ़ ने कई उतार-चढ़ाव देखा है. अपनी ग़रीबी को कभी भी आसिफ़ ने अपने कामयाबी के रास्ते में नहीं आने दिया और लगातार अपनी मेहनत से न केवल अपना भविष्य बनाया बल्कि न जाने कितने नौजवान के जीवन को संवार दिया.
कुछ दिनों के संघर्ष के बाद आसिफ को सऊदी अरब के जुबैल इण्डस्ट्रियल कॉलेज में नौकरी मिल गई और फिर आसिफ ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. दस सालों से भी अधिक समय जुबैल इण्डस्ट्रियल कॉलेज में प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवा देने के बाद पिछले दो सालों से किंग अब्दुल अज़ीज़ यूनिवर्सिटी में अपना योगदान दे रहे हैं. जुबैल में रहते हुए आसिफ भारतीय प्रवासियों की हर तरह से मदद करते रहे. चाहे किसी को नौकरी दिलाने का मामला हो या फिर किसी के वीज़ा का मामला हो या फिर किसी को आर्थिक मादा देने की बात हो हर समय आसिफ आगे आगे नज़र आते हैं.
शिक्षा के क्षेत्र में भी सक्रिय
पिछले कुछ सालों में आसिफ़ ने शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी काम किया है. बिहार शिक्षा कारवां के बैनर तले आसिफ़ ने बिहार के विभिन्न इलाक़ों में सेमिनार का आयोजन किया है ताकि बिहार के अल्पसंख्यक एवं दलितों के शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाया जा सके. शिक्षा के प्रति आसिफ का कहना है कि सच्चर
कमिटी की रिपोर्ट ने बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश के जनता खासकर शिक्षाविदों की आँखें खोल दी हैं. अगर हम अब भी शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने में सफल नहीं हुए तो सब का साथ और सब का विकास का सपना कभी हम पूरा नहीं कर पाएंगे. आसिफ़ ने वैसे तो शिक्षा के ऊपर कई संगोष्ठियों का आयोजन कर चुके हैं लेकिन उन्होंने एक बड़ा शिक्षा सम्मलेन अपने गाँव जलकौरा, खगड़िया में कर के वहां के लोगों में जो जागरूकता लाने की कोशिश की है वो काफी सराहनीय हैं. उस सम्मेलन भारत के तत्कालीन अल्प्संखयक कल्याण मंत्री श्री के आर रहमान, बिहार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री श्री पी के शाही, भाषा वैज्ञानिक एवं शिक्षविद श्री एम जे वारसी, एम पी अली अनवर अंसारी सहित कई लोगों ने भाग लिया था और आसिफ के द्वारा किये जा रहे कार्यों की काफी सराहना की थी.
दलितों-अल्पसंख्यकों के लिए स्कूल
आसिफ़ ने बिहार में अल्पसंख्यक एवं दलितों के शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए सहरसा जिला के सिमरी बख्त्यारपूर में एक स्कूल की भी स्थापना की है जिसे उन्होंने इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल का नाम दिया है. आसिफ मूलरूप से खगड़िया जिला के जलकौड़ा गावँ के रहने वाले हैं और बिहार के विकास के लिए पूरी तौर पर समर्पित हैं. आसिफ आजकल अपनी पत्नी आयशा, बेटी शोआ और दो बेटों के साथ सऊदी अरब के जद्दा में रह रहे हैं.
आज ज़रूरत है बिहार को ऐसे युवा और लगनशील काम करने वालों की ताकि बिहार की तरक़्क़ी में और भी तेज़ी लाई जा सके. हमें उमीद है कि आसिफ़ एक न एक दिन बिहार आकर सामाजिक एवं राजनितिक तौर पर बिहार की तरक़्क़ी में ज़रूर अपना योगदान देंगे
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/03/warsi.jpg” ]एमजे वारसी भाषावैज्ञानिक एवं विश्लेषक हैं और अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.[/author]