एम जे वारसी बता रहे हैं कि बिहार में दो चरणों के चुनावों में जो ताजा रुझान मिल रहे हैं  उससे लगता है कि मुसलमान ओवैसी का हव्वा खड़ा करने के कुछ लोगों के प्रयास के बावजूद वे उन्हें नकार कर सूजबूझ का परिचय दे  रहे हैं.muslim

 

पहले दौर के मतदान के बाद प्राप्त रुझानों से पता चलता है कि बिहार विधान सभा चुनाव में ज्यादातर मुस्लिम वोट लालू-नीतीश-कांग्रेस गठबंधन के खाते में जाता दिखाई दे रहा है. लेकिन पहली बार हैदराबाद की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी की एआईएमआईएम के बिहार विधान सभा चुनाव में आने तथा 24 सीटों पर सीमांचल में चुनावलड़ने के एलान से ऐसा लगने लगा था कि सेकुलर वोटों का बिखराव हो जाएगा और परिणाम स्वरूप एन डी ए गठबंधनको इस से सीधा-सीधा फायदा पहुँचेगा।

 

लेकिन पार्टी के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी के हाल ही में सिर्फ 6 सीटों पर चुनावलड़ने के फैसले ने जहाँ एक तरफ उनकी दूर अंदेशी होने का सबूत दिया है वहीं दूसरी ओर  लालू-नीतीश-कांग्रेस गठबंधनके उम्मीदवारों को जीत के एक क़दम और क़रीब कर दिया है. होना तो ये चाहिए था कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन को लालू-नीतीश-कांग्रेस गठबंधन में शामिल होकर मुस्लिम बहुल्य क्षेत्र से अधिक से अधिक उमीदवारखड़े करने चाहिए थे. गठबंधन में शामिल होने से उनके उम्मीदवारों की जीत की संभावनाएं भी अधिक होती और चुनाव केबाद राष्ट्रीय राजनीति में मुस्लिम राजनीति का नया चेहरा बनकर उभरते और उनकी स्वीकारता और लोकप्रियता भीबढ़ती.

 

अगर बिहार का आंकलन करें तो पता चलता है कि बिहार में मुस्लिम वोटरों की आबादी करीब 17 से 20 फीसदी है. राज्य में लगभग 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 20  से 75 प्रतिशत है। 50 से अधिक सीटों पर 10 से 20 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. 2010 के चुनाव में 19 मुस्लिम विधायक चुनकर विधान सभा पहुंचे थे. 35 ऐसे मुस्लिम उम्मीदवार थे जिनकी हार मात्र 29 से लेकर 1000 वोटों के बीच हुई थी. दर असल बिहार में जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन को मुस्लिम वोट मिलने की संभावना सबसे ज्यादा हैं। खासकर लालू और नीतीश की उम्मीदें इस चुनाव में मुस्लिम-यादव समीकरण पर ही टिकी है जिसका पूरा पूरा फायदा उनको मिलता दिख रहा है. मतदाता का एक तबका ऐसा भी है जो जाति और धर्म से ऊपर उठकर नितीश कुमार द्वारा किये गए कार्यों को देखकर विकास के नाम पर नितीश कुमार को वोट दे रहे हैं.

 जातीय गणित

अगर इतिहास के एक दो पन्ने पलटकर पीछे की ओर देखें तो पता चलता है कि बिहार में चुनाव पहले से ही जातीय आधार पर लड़े जाते रहे हैं। साल 2005 और 2010 के विधानसभा चुनाव में हालांकि जाति कार्ड के बजाय विकास को मुख्य मुद्दा बनते देखा गया था। लेकिन अब राजनीतिक दलों का जोर एक बार फिर से जातीय समीकरण पर आधारित चुनाव की ओर है. बिहार में मुस्लिम वोट बैंक को लालू और नितीश का आधार वोट माना जाता है और अगर एआईएमआईएम सीमांचल के इस मुस्लिम बहुल इलाके में सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारती तो यक़ीनन महागठबंधन को बहुत ज़यदा नुकसान उठाना पड़ सकता था. अगर इस चुनाव में ओवैसी सीमांचल में अपने दो या तीन उम्मीदवार को भी जिताने में कामयाब हो जाते हैं तो ये उनकी बड़ी सफलता होगी तथा आने वाले समय में  बिहार का राजनीतिक समीकरण बदल सकता है। सीमांचल क्षेत्र के किशनगंज में 70, अररिया में लगभग 45 , कटिहार में लगभग 44 और पूर्णिया में लगभग 25 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं।

 

बिहार में 20 प्रतिशत के लगभग मुस्लिम वोटर हैं। ऐसे में अगर मुस्लिम एक सोच के साथ अगर विकास के नाम पर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं, जिसकी इस विधान सभा चुनाव में उम्मीद की जा रही है, तो निश्चित तौर पर बिहार के अल्प्संखयक इस चुनावी गणित को बदलने में कामयाब हो सकते है. क्योंकि बिहार के मस्लिम खासकर मुस्लिम युवाओं में अभी भी नितीश कुमार और लालू के प्रति आस्था बरक़रार है. अगर विकास को आधार मान कर देखें तो आज़ादी के बाद से लेकर अब तक बिहार में सबसे अधिक कांग्रेस ने, फिर 15 साल तक लालू प्रसाद ने और पिछले दो चुनावों से नितीश कुमार शाशन कर रहे हैं लेकिन जितना विकास नितीश कुमार के 10 साल के शाशनकाल में हुआ उतना विकास इस से पहले किसी दौर में नहीं हुआ, हालांकि विकास की गति धीमी ज़रूर रही. नितीश के कार्यकाल के दौरान किया गया विकास ही उनके वोट मांगने का मुख्य आधार है। बिहार की जनता ये बात अच्छी तरह समझती है कि मुसलमान हो या हिन्दू सबको विकास चाहिए।

 

इन सभी उताड़-चढ़ाव के साथ साथ बिहार विधान सभा चुनाव का यह अंकगणित समय और बदलते समोकरणों के साथ काफी दिलचस्प होता जा रहा है और आखिर में चुनाव परिणाम से ही तय होगा कि सत्ता तक पहुंचने में कौन कामयाब होता है।

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एम जे वारसी भाषावैज्ञानिक एवं विश्लेषक हैं और अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं. उनसे [email protected]  पर संपर्क किया जा सकता है.

By Editor


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