नीतीश मिश्रा, पूर्व मुख्‍यमंत्री डॉ जगन्‍नाथ मिश्रा के पुत्र हैं। जब डॉ मिश्र की राजनीति का सूर्यास्‍त हो रहा था, तब नीतीश मिश्रा की राजनीतिक संभावनाओं के कोपल फूट रहे थे। 2000 में नीतीश मिश्रा पहली बार जनता की अदालत में गये और जनता ने खारिज कर दिया। डॉ जगन्‍नाथ मिश्र के पुत्र होने की पहचान भी काम नहीं आयी।

पूर्व मंत्री नीतीश मिश्रा से वीरेंद्र यादव की बातचीत

आज फुलवारीशरीफ से विधानसभा आने के रास्‍ते में साइकिल नीतीश मिश्र के दरवाजे पर रुकी। सोचा चलते हैं देंखे, अवकाश में नीतीश मिश्रा क्‍या कर रहे हैं। थोड़ी देर बाद नीतीश जी कार्यालय में आये। बात वहीं से शुरू हो हुई क्‍या कर रहे हैं अवकाश के वक्‍त में। फरवरी, 2005 से 2015 तक विधायक व मंत्री रहने के बाद 2015 में चुनाव हार गये। 2015 का चुनाव उन्‍होंने भाजपा के टिकट पर लड़ा था। हार का अंतर करीब 800 वोटों का था। उनका मानना है कि महागठबंधन के वोटों के समीकरण के बावजूद सिर्फ 800 वोटों की हार इस बात का प्रमाण है कि जातीय सीमाओं को तोड़कर जनता ने उनका समर्थन किया था।

भाजपा के संगठनात्‍मक ढांचे में उनके जिम्‍मे नीति विषयक शोध विभाग का काम है और वे इसी काम को आकार देने में जुटे हैं। केंद्र सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं के कार्यान्‍वयन के विभिन्‍न आयाम और उसके असर का अध्‍ययन कर रहे हैं। अपनी अध्‍ययन रिपोर्ट से पार्टी को अवगत कराते हैं। उज्‍ज्‍वला, मुद्रा समेत अन्‍य योजनाओं की जमीनी हकीकत को करीब से देखने के दौरान उनमें आने वाली परेशानी या सहूलियत से भी पार्टी को अवगत कराते हैं। पार्टी अभी लोकसभा के सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों का विश्‍लेषण कर रही है। जातीय बनावट व बसावट को लेकर भी काम कर रही है। इसके लिए विभिन्‍न स्‍तर पर संगठन से जुड़े लोग काम कर रहे हैं।

अपनी कार्ययोजना को लेकर उन्‍होंने कहा कि वे प्रखंड या पार्टी के संगठनात्‍मक ढांचे में मंडल के स्‍तर पर उसकी खासियत या जरूरतों को लेकर भी काम करना चाहते हैं, ताकि वहां की स्‍थानीय जरूरतों के हिसाब से नीति और कार्यक्रमों का निर्धारण हो सके। उनका एक अन्‍य प्रस्‍ताव युवा संवाद का आयोजन करने का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के न्‍यू इंडिया की अवधारणा को लेकर युवाओं की सोच जानने और समझाने के लिए युवा संवाद का आयोजन किया जाना चाहिए। इसमें न्‍यू इंडिया के संबंध में युवाओं की सोच और विशेषज्ञों का व्‍याख्‍यान को शामिल किया जा सकता है।

नीतीश मिश्रा गन्‍ना विकास, आपदा प्रबंधन और ग्रामीण विकास विभाग का काम संभाल चुके हैं। ग्रामीण विकास विभाग में ग्रामीण विकास सेवा संवर्ग का गठन उनकी बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। उन्‍होंने नीतीश कुमार और जीतनराम मांझी दोनों सरकारों में काम किया है। आगे की संभावना की बात शुरू होने वाले पर कहते हैं- बिहार तो छोड़ना चाहते हैं, लेकिन संभावनाओं पर कई सीमाएं भी हैं। नीतीश मिश्रा लोकसभा जाना चाहते हैं। लेकिन जातीय व सामाजिक समीकरण आड़े आ जाते हैं। उत्‍तर बिहार में ब्राह्मण का प्रभाव वाला लोकसभा क्षेत्र दरभंगा, मधुबनी और झंझारपुर को माना जाता है। इसमें से एकाध सीट ब्राह्मण कोटे में जाती भी है तो दिल्‍ली से भी कई दावेदार टपक आते हैं। अब तो गठबंधन का भी नया ‘धर्म’ शुरू हो गया है।

नीतीश मिश्र को राजनीति विरासत में भले मिली हो लेकिन राजनीतिक आधार व जमीन के लिए उनको अपना संघर्ष करना पड़ा है। पिता डॉ जगन्‍नाथ मिश्र का नाम पहचान के लिए भले जुड़ा हो, लेकिन एक-एक वोट के उन्‍हें अपनी पहचान का ही सहारा लेना पड़ता है और आगे भी यह सिलसिला जारी रहने वाला है।

By Editor


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