पिछले वर्ष की तुलना में 2015-16 का बिहार बजट निराशा बढ़ाने वाला है. शिक्षा के खर्च में ढ़ाई हजार करोड़ की कटौती और योजना मद में ढ़ाई सौ करोड़ करके सरकार ने अपनी मायूसी जाहिर कर दी है.
इर्शादुल हक, सम्पादक, नौकरशाही डॉट इन
शिक्षा पर गत वर्ष 24 हजार 7 सौक करोड़ आवंटित किये गये थे पर इसे इस बार घटा कर 22 हजार करोड़ कर दिया गया है.
शिक्षा जैसे क्षेत्र में जहां राज्य सरकार को इजाफा करना चाहिए वहां लगभग 2 हजार करोड़ रुपये कम खर्च का प्रोविजन करना निराशाजनक है.
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इसी प्रकार बजट के आकार में भी कोई खास इजाफा नहीं करना इस बात का सूचक है कि बिहार में तरक्की की रफ्तार कम हुई है.
योजना मद में भी कमी
पिछले वर्ष यानी 2014-15 में प्लान और ननप्लान मिला कर बजट का कुल आकार 1 लाख 16 हजार के करीब था जबकि वर्ष 2015-16 के बजट का कुल आकार मात्र एक लाख 20 हजार 600 करोड़ का है. यानी केवल साढ़े चार हजार करोड़ का इजाफा. प्लान यानी योजना मद में पिछले वर्ष 48 प्रतिशत का इजाफा किया गया था. यानी वर्ष 2013-14 में जहां योजना मद में 39 हजार करोड़ से बढ़ा कर 57 हजार 655 करोड़ रुपये किया गया था वहीं इस वर्ष यानी 2015-16 में योजना मद में 57 जार 425 करोड़ रुपये रखे गये. मतलब साफ है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष योजना मद में जो खर्च रखा गया है वह पिछले वर्ष की तुलना में 235 करोड़ रुपये की कमी आयी है.
टैक्स वसूली
इस पूरे मामले में एक बात जो याद रखने की है वह यह है कि सरकार की राजस्व प्राप्ति में भी अनुपातिक कमी आयी है. खास कर निर्मण क्षेत्र में सीमेंट और सरिये की मांग में कमी, रियेल स्टेट क्षेत्र में मंदी और जमीन रजिस्ट्री के खर्च में बेतहाशा इजाफा करने के कारण सरकार के राजस्व में खासी कमी आयी है.
और यह सब सरकार की गलत पालिसियों के काऱण हुआ है. दूसरी तरफ चुनावी वर्ष होने के कारण सरकार ने इस बजट में टैक्स में किसी प्रकार का कोई इजाफा नहीं किया है जिसके कारण राजस्व प्राप्ति में भी इजाफी कोई गुंजाइश नहीं है.