केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने के बाद प्रशासनिक व राजनीतिक पदों पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक के स्वयंसेवकों का दखल बढ़ जाता है। इन स्वयं सेवकों को भाजपा प्रशासन के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करने की शुरुआत करती है। बिहार में अब तक तीन बार स्वयंसेवकों को ‘लाट साहेब’ यानी राज्यपाल बनने का मौका मिला है। भाजपा की पहली मिलीजुली सरकार में पहली बार एसएस भंडारी को राज्यपाल बनाया गया था। उनका कार्यकाल 27 अप्रैल, 98 से 15 मार्च, 99 तक था। उनके कार्यकाल के दौरान राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं। उस दौर में राजभवन और मुख्यमंत्री के बीच दूरी काफी बढ़ गयी थी। भंडारी का पूरा कार्यकाल विवादों में घिरा रहा था।
बिहार ब्यूरो
श्री भंडारी अपने विवादास्पद निर्णयों के लिए जाने जाते हैं। वह अपने कार्यकाल में एक बार करीब एक माह के लिए राष्ट्रपति शासन भी लगवा चुके थे। 12 फरवरी से 8 मार्च, 99 तक बिहार में राष्ट्रपति शासन भी लागू रहा था। राज्यपाल का यह निर्णय इतना विवादित हुआ कि राबड़ी देवी के दुबारा शपथग्रहण के सप्ताह भर के अंदर उनकी विदाई हो गयी। संघ के दूसरे स्वयं सेवक एम रमा जोइस को 12 जून, 2003 को राज्यपाल बनाया गया है। उनका कार्यकाल 31 मार्च, 04 तक था। इनके दौर में विवाद के कम मौके आए। वह जज थे और संघ की निकटता, जुड़ाव व स्वयंसेवक होने के कारण उन्हे बिहार के राज्यपाल की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी।
संघ के तीसरे स्वयंसेवक राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी बने हैं। वह अखबारों में समसामयिक विषयों पर लिखते भी रहे हैं। वह अच्छे वक्ता के साथ कठोर प्रशासन से भी माने जाते हैं। आज जब बिहार में सत्तारूढ़ दल जदयू व केंद्र में सतारूढ़ भाजपा के बीच टकराव की नौबत आ गयी है। वैसी स्थिति में केसरी नाथ त्रिपाठी की भूमिका पर सबकी निगाह रहेगी। हालांकि यह नियुक्त अतिरिक्त प्रभार के तौर है, फिर भी राज्यपाल की भूमिका गौण नहीं होती है।