उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार की बिगड़ती स्थिति पर एक लेख लिखा है. उन्होंने सरकार की नाकामी की चर्चा करते हुए पूछा कि क्या नीतीशजी ने इसलिए ग्द्दी छोड़ दी कि जिम्मेदारियों से बच सकें?
बिहार में शैक्षणिक- प्रशासनिक और आर्थिक कुव्यवस्था एवं अराजकता फैली हुई है। हाल के दिनों में दो-तीन ट्रेनों में डकैती की घटना हुई तो बलात्कार-अपहरण-हत्याओं का दौर पुरे बिहार में चल रहा है। जहानाबाद में आरोप के संदेह में महिला को निर्वस्त्र कर पुलिस की मौजूदगी में सार्वजनिक तौर पर घुमाने, पीटने व गैंगरेप करने की शर्मनाक घटना सामने आई है।
इससे पहले रोहतास में पुलिस की गोली से दो लोगों की मौत हो गई जिस पर सरकार का पक्ष अफसोसजनक है। बिहार भर में दलित-पिछड़े-पसमांदा-ग्रामीण समाज के तमाम समुदायों के गरीब लोगों पर जुल्म बढ़ा है, पुलिस न तो केस दर्ज करती है, न ही प्रशासन पीड़ितों की सुनने के लिये खड़ा होता है – शायद बिहार की सरकार ने कान-आँख बंद कर लिये हैं।
ये तो महज एक बानगी है लेकिन ऐसी अनगिनत संगीन घटनायें बिहार में चौतरफा घट रही हैं जिस पर राज्य सरकार अनदेखी तो कर ही रही है, सवालों से बचने के लिये चुप्पी भी साध रखी है। जाहिर है कि बिहार की सरकार का अख़लाक और प्रशासन पर आम जनता का भरोसा दोनों ही खत्म हो गया है। बिहार भर में आतंक जैसी स्थिति कायम हो गई है जिसमें कानून लोग अपने हाथ में ले रहे हैं।
न्याय और संवाद दोनों खत्म
हाल के दिनों में एन.एम.सी.एच. (के छात्र, सांख्यिकी कर्मी, नियोजित शिक्षकों के खिलाफ प्रशासन व पुलिस ने जिस प्रकार का गैर-लोकतांत्रिक रवैया अख्तियार किया है वह शर्मनाक है – कम से कम संवाद कर इन लोगों को माँगो पर भरोसा तो दिया ही जा सकता था। न्याय की बात तो दूर, संवाद की परम्परा भी बिहार की इस सरकार ने खत्म कर दिया है।
न्याय जल्द मिले या समय पर मिले जरूरी है क्योंकि देरी से न्याय मिलना भी एक अन्याय है।
बीएसईबी की हठधर्मिता
**मैट्रिक और इंटर की कॉपी चेकिंग में बड़े पैमाने पर धाँधली की शिकायत सामने आई है और टॉपर की रैंकिंग में भी गड़बड़ी है। खगड़िया के एक पिछड़े वर्ग के छात्र रवि कुमार को एम्स (#AIIMS) की परीक्षा में रैंकिग मिल गई लेकिन उसको 12वीं की परीक्षा में फेल कर दिया गया। यही नहीं छात्र को आज तक बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने कॉपी नही दिखाई और उसके साथ दुर्व्यवहार कर -धमका कर भगा दिया गया। इस छात्र के तमाम दावे और आरोप सुर्खिया बने है तो बताया जाता है कि समिति अब अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिये कॉपी में गड़बड़ी कर उसे फेल सिद्ध करने में लगी है और इस छात्र रवि कुमार का कैरियर बर्बाद कर दिया गया, जबकि मुख्यमंत्री को व्यक्तिगत संज्ञान लेना चाहिये था।
चौपट शिक्षा
बिहार की शिक्षा नीतीश सरकार की गलत नीति और साजिश का शिकार होकर रह गई है जिसका खामियाजा बिहार की सरकारी शिक्षा पर आश्रित राज्य की 90 फिसदी जनता अने वाली कई पीढ़ी तक भुगतने को मजबूर होगी। बिहार से शिक्षा, रोजगार, व्यापार और भय के कारण पलायन बदस्तूर जारी और इसमें पिछले 25 सालों का रिकॉर्ड कमोबेश एक ही तरह का है जिसमें नीतीश कुमार के 8 सालों का शासन शामिल है।
नकली दवा से हाहाकार
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी हाल काफी बुरा है। सभी मेडिकल कॉलेजों में सुविधाओं की भारी कमी है और अeम जनता को राज्य भर में बिमारी के कारण बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। अगर ठीक से जाँच हो तो बिहार में भी उत्तर प्रदेश की तरह एन.आर.एच.एम. (एम) घोटाला सामने आ सकता है। हाल ही में जो दवा घोटाला सामने आया है वह बिहार के सबसे बड़े घोटालों में से एक है
। इन दवाओं के कारण हजारों की संख्या में लोग बिहार में मरे होंगे जिसका आकड़ा किसी के पास नहीं होगा क्योंकि फर्जी दवाओं से मरे लोगों के मौत का कारण भी डॉक्टरी व सरकारी दस्तावेजों में फर्जी ही बताया गया होगा जिसका पता न तो बेचारे मरने वाले लोगों को या फिर उनके परिजनों को होगा कि वे किस कारण से मरे हैं। शिक्षा के बाद बिहार की सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्रों को ध्वस्त कर आम गरीब जनता को नीजी शिक्षा व स्वास्थ्य ठेकेदारों के हाथों नीलाम कर दिया है। गरीब और बिमार लोगों को मौत के मुँह में ढकेलकर धन उगाही और भ्रष्टाचार करने वाली सरकार को आम जनता की आह जरूर लगेगी ऐसा मेरा विश्वास है।
सीएजी ने खोला पोल
सीएजी की वर्ष 2012-13 की रिपोर्ट सामने आई है जिसमें बिहार सरकार के सभी विभागों में भारी आर्थिक अनियमितता सामने आई है जो कुल 10 हजार करोड़ रूपये का घोटाला है। सिर्फ एक साल में हुये इतने बड़े आर्थिक घोटालेबाजी से अनुमान लगाया जा सकता है कि नीतीश सरकार ने इन 8 सालों में सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी कर झुठ की ब्रांडिंग देश- दुनिया में की है। इस सुशासन का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार पर सिर्फ अफसोस और हँसी आती है जब पता चलता है कि मनरेगा, इंदिरा आवास और तमाम केन्द्रीय योजनाओं के लिये एलॉट किये गये पैसे को खर्च तक नहीं कर पाती है और जो खर्च किये उसका हिस्सा भी जनता तक नहीं पहुँचा क्योंकि भ्रष्टाचार में बिहार का हर महकमा आकंड डूबा हुआ है।
पैसे के इस्तेमाल में नाकारापन
सर्व शिक्षा अभियान के तहत सिर्फ योजना एवं बजट नहीं बना पाने के कारण पिछले साल का मिला पैसा बिहार सरकार खर्च नहीं कर पाई जिसके कारण उसे 12 हजार, 231 करोड़ की केन्द्रीय राशि नहीं मिल सकी। सी.ए.जी. की सबसे आश्चर्यजनक बात जो सामने आई है वह कि किशनगंज, खगड़िया और सीतामढ़ी जिले में कुल पढ़ने वाले बच्चों की आबादी से भी अधिक बच्चों का नामांकन स्कुलों में है। रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक लगभग 434 करोड़ रूपये की वित्तीय हानि खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग में पाई गई है। बिहार का आर्थिक तंत्र भी ध्वस्त हो गया है।
बिहार सरकार अपनी तमाम विफलताओं और असफलता का ठीकरा जब केन्द्र सरकार पर फोड़ती है और बिहार के पिछड़ेपन के सवाल पर सिर्फ ‘विशेष राज्य’ का ढिंढोरा पीट करा राजनीति की दुकानदारी चलाना चाहती हो – तो अब सवाल यह उठता है कि लोकसभा चुनाव- 2014 में बुरी तरह परास्त होने के बाद नर्वस ब्रेकडाउन का शिकार होकर बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी ने गद्दी छोड़ दी या फिर पिछले आठ सालों के दौरान आर्थिक कुप्रबंधन के कारण हुये घोटाले की भविष्य में जाँच से बचने के लिये दस साल की सत्ता के अंतिम वर्ष किसी दूसरे के माथे ठीकरा फोड़ना चाहते हैं. क्या नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री का पद इस लिए छो़ड़ दिया कि वह इन सवालों का जवाब देने से बच जायें ?
उपेंद्र कुशवाहा राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय ग्रामीण राज्य मंत्री हैंं.
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