हमें अब इस भ्रम से निकल जाना चाहिए कि छठ केवल बिहार, झारखंंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश का पर्व रह गया है. अमेरिका से एमजे वारसी इस खास लेख में बता रहे हैं कि वहां यह पर्व किस तर छा चुका है
एक समय जहां बॉलीवुड फ़िल्में अमेरिकी थिएटरों में अपनी जगह बना रही हैं वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई सांस्कृतिक अनुभव परिभाषित हो रहा है. कुसे (Cusay) पारंपरिक हाथ से बुने हुए दक्षिण एशिया के अलंकृत जूते, अब भारतीय और दक्षिण एशियाई दूकानों में विशेष रूप से अब Macy और Nordstrom जैसे जूतों की दूकानों में भी उपलब्ध हैं. एक नए रूप में साफ़ तौर पर दक्षिण एशियाई प्रवृत्तिया सामान्य अमेरिकी संस्कृति में अपनी जगह आसानी से बनाती जा रही है और दक्षिण एशियाई मूल के अमेरिकियों में अपने त्यौहारों को मनाने का रुझान बढता जा रहा है.
1960 और 1970 के दशक में वहाँ से दक्षिण एशियाई मूल के लोग, विशेष रूप से, भारतीय मूल प्रवासी अमेरिका में आकर बस गए तथा अपनी मेहनत और लगन से अमरीकी समाज का एक हिस्सा बन गए. अपनी ूसंस्कृतियों से जुड़े रहने के लिए इनके बच्चे चाहे कहीं काम कर रहे हों, कालेज में पढ़ रहे हों, या कालेज जाने की तैयारी कर रहे हों, वे अमरीकी संस्कृति के साथ-साथ अपने नैतिक मूल्यों और अपने आदर्शों को बनाए रखने के लिए कामयाबी के साथ आगे बढ़ते नज़र आ रहे हैं.
दूसरी पीढ़ी के बिहारी मूल के वाशिंगटन विश्वविद्यालय अमेरिका के छात्र प्रणव मिश्रा बड़े उत्साह के साथ बताते हैं कि एक ओर जहां पवित्र गंगा नदी शिकागो के उपनगरीय इलाके से बहुत दूर है इसके बावजूद हमारा सारा परिवार अभी भी छठ की परंपरा को जीवित रखे हुए है. जबकि आमतौर पर छठ पूजा में महिलायें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं. लेकिन मेरे पिता जी भी इस पर्व को मनाने में किसी से पीछे नहीं रहते.
बढ़ती जा रही है छठव्रतियों की संख्या
अमरीका में हर साल विभिन्न समुदायों के द्वारा सांस्कृतिक कार्यकर्म और उत्सव बड़े पैमाने पर मनाया जाता है. आज अमरीका में भारतीय त्यौहार बहुत लोकप्रिय है और दिनों-दिन इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. आज होली और दीवाली के साथ-साथ छठ भी संयुक्त राज्य अमेरिका के आप्रवासी बिहारियों में बहुत हर्षो-उल्लास के साथ मनाया जाता है. संयुक्त राज्य अमेरिका में आस्था के महा पर्व छठ मनाने और इसकी लोकप्रियता में पिछले कुछ वर्षों में काफी वृद्धि हुई है और प्रत्येक वर्ष छठ मनाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. छठ शब्द का अर्थ नंबर छह है और इस तरह त्योहार कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) महीने में मनाया जाता है. यह एक 4 दिन लम्बा त्योहार है और अब यह दुनिया भर में प्रवासी बिहारियों के मुख्य समारोहों में से एक बन गया है.
बेतिया के प्रदीप राय
बिहार में बेतिया के प्रदीप राय जो आजकल टेक्सास के ह्यूस्टन शहर में रहते हैं, उनहोंने बताया कि “हम लोग अपनी संस्कृति के बारे में बहुत ही भावुक होते हैं और हम कहीं भी चले जाएँ अपनी जड़ों और रीती-रिवाजों को कभी नहीं भूलते. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम हैदराबाद में हों या सात समुन्दर पार ह्यूस्टन की ओर पलायन कर गए हों हम हमेशा अपने त्यौहारों और सांस्कृतिक कार्यकर्मों का जश्न मनाने पर बहुत ही गर्व महसूस करते हैं. छठ चूंकि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है इसलिए हम जहां भी रहते हैं बहुत ही उत्साह के साथ यह त्यौहार मनाते हैं.
ऐसे हासिल करते हैं छठ की सामग्री
प्रदीप बताते हैं, मेरे माता पिता ह्यूस्टन आये थे, हमलोगों ने पूरी श्रद्धा के साथ छठ पर्व मनाया . मेरी माँ ने चार दिनों तक उपवास किया. छठ मनाने के लिए तो आवश्यक वस्तुएं जैसे डाला और सूप तो हम भारत से ही ले आये थे. दूसरी चीज़ें जैसे फूल, फल, अनाज, सूखा नारियल, गन्ना, सफेद मूली, मिठाई, केले के पत्ते, अगरबत्ती, पान के पत्ते, सुपारी, बताशा, दीये आदि यहीं ह्यूस्टन में ही भारतीय और मैक्सिकन दुकानों में ही मिल गए थे. पकवान जैसे ठकुआ, खजूर, पेडुकिया ये सब घर पर ही बनाया गया था. मेरी माँ ने दोनों संध्या घाट और सुबह घाट पर दर्जनों छठ के गीत गाये थे. अमरीका में गंगा नदी के अभाव में हमलोगों स्विमिंग पूल का उपयोग दोनों अरागय के लिए किया. मेरी माँ ने छठ पर्व मनाने एवं पूजा-अर्चना के अनुष्ठानॉ का पूर्ण पालन किया.
“बिहारवासियों के लिए छठ पूजा का बड़ा महत्व है हम इस त्यौहार को मनाते हुए बड़े हुए हैं इसलिए हम दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएँ यह असंभव है कि आस्था के इस महा पर्व के मनाने में इस त्योहार से जुड़ी भावनाओं में कोई कमी आये. अब तो ये त्यौहारें हमारी पहचान का एक हिस्सा बन गयी हैं. हम ये भी मानते हैं कि यह सब केवल भगवान की कृपा है कि हम अपने देश से दूर रहकर भी अपनी पहचान के साथ एक सफल ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं ये और बात है कि कभी-कभी अपनी मिट्टी की याद आती है जो स्वाभाविक है और ये भी सत्य है कि इसका कोई बदल नही है.
हम प्रयास करते हैं छठ पूजा के समय उपलब्ध सारी सहूलतों का फायदा उठाया जाय लेकिन कभी-कभी कुछ चीज़ों की कमी की वजह से हम ऐसा नहीं कर पाते हैं जैसे गंगा नदी के किनारे पूजा करने में जो आनंद और शान्ति दिल को मिलती है वह यहाँ स्विमिंग पूल पर नही मिल पाती. साथ ही छठ पूजा के गीतों को सुनकर जो भावनाएं हमारे दिल में में उत्पन्न होती हैं उसका विवरण मेरे लिए बहुत मुश्किल है. मुझे आज भी याद है कि छठ पूजा के दिन छठ के गीतों को सुनते हुए मेरी पत्नी की आँखों में आंसू भर आये थे और उन सांस्कृतिक भावनाओं से बाहर निकालना मुश्किल हो गया था.” उक्त बातें रवि शेखर, अनुसंधान विशेषज्ञ, ने बताया जो बिहार से हैं और कई सालों से अमरीका के एक्सान मोबील अपस्ट्रीम रिसर्च कम्पनी में काम कर रह रहे हैं.
दूसरी पीढ़ी के प्रणव मिश्रा
दूसरी पीढ़ी के बिहारी मूल के वाशिंगटन विश्वविद्यालय अमेरिका के छात्र प्रणव मिश्रा बड़े उत्साह के साथ बताते हैं कि एक ओर जहां पवित्र गंगा नदी शिकागो के उपनगरीय इलाके से बहुत दूर है इसके बावजूद हमारा सारा परिवार अभी भी छठ की परंपरा को जीवित रखे हुए है. जबकि आमतौर पर छठ पूजा में महिलायें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं. लेकिन मेरे पिता जी भी इस पर्व को मनाने में किसी से पीछे नहीं रहते. प्रणव ने बताया कि छठ हमारे घर में चार दिनों तक मनाया जाता है. पहले दिन हम पूरे घरों की सफाई करते हैं, हम अपने कमरों से लेकर बात-रूम और सारे लान की सफाई करते हैं.
हॉट टब में स्नान
प्रणव कहते हैं कि उनके माता- पिता दोनों नदी के अभाव में बाहर हॉट टब में स्नान हैं. दूसरे दिन मेरी माँ व्रत रखती हैं. रात के समय वह आम तौर पर हम सब को भोजन खीर और पुरी परोसती हैं. तीसरे दिन भी मेरी माँ पूरे दिन व्रत रखती है. हालांकि परंपरा के अनुसार भोजन और पानी दोनों की उपवास की जाती है परन्तु यह हमेशा संभव नहीं हो पाता है क्योंकि दोनों आफिस में काम करते हैं और काम करने के लिए उन्हें ऊर्जा की आवश्यकता होती है. फिर भी वे अक्सर व्रत रखने का प्रयास करते हैं ताकि पर्व को पूरे आस्था के साथ मनाया जा सके. अगले दिन कई वर्षों से हमलोग लेक मिशिगन जाते हैं जो हमारे घर से एक घंटे की दूरी पर है और झील के तट पर पूजा करते हैं. अंतिम दिन मेरी माँ हम सब को प्रसाद देती हैं. इस प्रकार हमारा परिवार अपनी धरती से हज़ारों मील दूर रहकर भी छठ पर्व बड़े आस्था के साथ मानते हैं.
अमेरिकियों में भी हो रहा लोकप्रिय
भारतीय त्यौहार, गैर भारतीय खासकर अमेरिकी लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो रही है. अक्सर लोग भारतीय सांस्कृति के बारे में उत्सुकता से पूछते हैं. जब भी कभी सार्वजनिक स्थल पर कोई कार्यकर्म आयोजित किया जाता है तो भारी संख्या में गैर भारतीय खासकर अमेरिकी लोग मौजूद होते हैं. उन्हें यह जानकार बहुत आश्चर्य होता है कि किस प्रकार विभिन्न जाती, धर्म और समुदाय के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं तथा एक दूसरे के धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यकर्मों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. इस तरह अमरीका में भारतीय सांस्कृतिक कार्यकर्मों की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है और अपने देश से दूर रहकर भी अपनी संकृति को अपने दिलों में बसाकर आनाद्पूर्वाक अपना जीवन व्यतीत करने के साथ-साथ अपने देश और राज्य का नाम रौशन कर रहे हैं.
एम जे वारसी भाषावैज्ञानिक हैं और अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.