ऑल इंडिया युनाइटेड मुस्लिम मोर्चा( एआईयूएमएम) ने नोटबंदी व शराबबंदी की तर्ज पर दंगाबंदी कानून लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन चलाने की घोषणा की है.
पटना में गुरुवार को आशियाना दीघा रोड स्थित जकात भवन में आयोजित समाज बचाओ कांफ्रेंस के दौरान एआईयूएमएम के राष्ट्री अध्यक्ष व पूर्व सांसद डा एम एजाज अली ने कहा कि शराबबंदी और नोटबंदी जैसे फैसले के बाद अब वक्त आ गया है कि सरकारें दंगाबंदी कानून लागू करें. उन्होंने कहा कि संसद में दंगा विरोधी बिल 15 वर्षों से लटका है, लेकिन इसे पास नहीं होने दिया जा रहा है.
एजाज अली ने कहा कि संसद में कानून बनाने के बजाये अत्याचार निवारण अधिनियम में दंगा को शामिल किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि एससी, एसटी एक्ट के तहत दलितों और आदिबासियों पर होने वाले अत्याचार पर कार्रवाई होती है जिसके चलते इस अधिनियम के खिलाफ कोई दुस्साहस नहीं कर पाता. इस अधिनियम में अल्पसंख्यकों को भी जोड़ा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि आज के भयावह माहौल में अल्पसंख्यकों के दिलों से डर निकालने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि जब तक शांति नहीं कायम होती तब तक समाज में तरक्की नहीं हो सकती.
कांफ्रेंस की अध्यक्षता करते हुए स्वामी शशिकांत जी ने कहा कि पिछले 70 सालों में साम्प्रदायिक दंगों के कारण अल्पसंख्यकों का जितना नुकसान हुआ है उतना ही नुकसान देश का हुआ है. उन्होंने कहा कि देश के नुकसान के खात्मे के लिए दंगाबंदी जरूर किया जाना चाहिए. इस अवसर पर मोर्चा के प्रवक्ता कमाल अशरफ ने कहा कि अगर सरकार ने दंगाबंदी के लिए कानून में सशोंधन नहीं किया तो मोर्चा देश्वयापी आंदोलन शुरू करेगा. नौकरशाही डॉट कॉम के सम्पादक इर्शादुल हक ने कहा कि दंगाबंदी का फैसला राज्य सरकार भी ले सकती है. बिहार में राजद से अलग होने के बाद सीएम नीतीश कुमार को इस बात के लिए आमादा किया जा सकता है कि वह राज्य के अत्याचार निवारण अधिनियम में दलितों के साथ अल्पसंख्यकों को भी शामिल करें.
इस अवसर पत्रकार रैहान गनी ने कहा कि समाज में जब तक साम्प्रदायिक एकता नहीं कायम नहीं होती तब तक सुख चैन से नहीं रह सकते लोग.
पत्रकार महफूज आलम ने कहा कि मुसलमानों की बदहाली की एक बड़ी वजह दंगा है. उन्होंने कहा कि हम आज भी गांव के लोगों को बिजली, सेहत जैसी सुविधायें नहीं दे सकें है. इसकी एक वजह यह भी है कि लोगों में भाईचारे की कमी है. सामाजिक कार्कर्ता फिरोज मंसूरी, मौलाना शकील काकवी, मुश्ताक आजाद, मो. ताहिर, उसमान हलालखोर, जावेद अनवर समेत अनेक लोगों ने अपने विचार रखे.