एनडीए के प्रमुख घटक दल भाजपा ने सरकार बनाने की संभावनाओं की तलाश शुरू कर दी है। भाजपा की रणनीति शुरू से अकेले दम पर बहुमत हासिल करने की रही है। यही कारण है कि वह 160 से कम सीट पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं थी। अब जबकि पांच चरणों में होने वाले चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गयी है और आगामी 8 नवंबर को मतगणना होगी। भाजपा के रणनीतिकार सरकार बनाने की संभावना की तलाश करने लगे हैं।
वीरेंद्र यादव, बिहार ब्यूरो प्रमुख
भाजपा मूलत: दो विकल्पों पर गंभीरता से मंथन कर रही है। इसे दो शब्दों से आसानी से समझा जा सकता है- पूर्ण बहुमत और विकलांग बहुमत। भाजपा परिणाम को लेकर आश्वस्त है, लेकिन अपने दम पर सत्ता में आएगी या घटकों के भरोसे, अभी संशय है। भाजपा सूत्रों ने बताया कि यदि भाजपा अपने दम पर 122 सीटें हासिल करने में सफल होती है तो वह मुख्यमंत्री के रूप किसी सवर्ण को विधायक दल का नेता बनवाएगी। लेकिन विकलांग बहुमत यानी घटक दलों के सहयोग से बहुमत में आती है तो भी पार्टी किसी सवर्ण को ही मुख्यमंत्री बनवाना चाहेगी। लेकिन सहयोगियों ने सवर्ण के नाम पर विरोध किया तो पिछड़ी जाति के किसी व्यक्ति को विधायक दल का नेता बनवा सकती है।
‘पिछड़ामुक्ति‘ का दबाव
भाजपा की आंतरिक राजनीति में पिछड़ा नेतृत्व को लेकर जबरदस्त अंतर्विरोध है। सवर्णों को आधार वोट मानने वाली भाजपा का सवर्ण तबका केंद्रीय नेतृत्व पर ‘पिछड़ामुक्ति’ का दबाव बना रहा है। लेकिन अभी कोई निर्णायक विरोध के लिए तैयार नहीं है। बीच चुनाव में अभी कोई विवाद पैदा नहीं करना चाहता है। हालांकि भाजपा बहुमत में आएगी, इसका कोई दावा नहीं किया जा सकता है, लेकिन सत्ता की संभावना को भांप कर ही भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बहुमत में आने पर विधायक दल के नेता यानी मुख्यमंत्री के नाम पर मंथन कर रहा है। इतना स्पष्ट हो गया है कि भाजपा अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल करती है तो बिहार में ‘सवर्ण युग’ का लौटना तय है, लेकिन विकलांग बहुमत मिलता है तो इस सपने पर ग्रहण लग सकता है।
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