आम आदमी पार्टी द्वरा इमाम बुखारी के वोट की अपील ठुकरा कर अरविंद केजरीवाल ने साबित कर दिया है कि आप को आम लोगों का वोट चाहिए, मुसलमान इसके निहतार्थ समझें और आप को कांग्रेस न बनने दें.
तबस्सुम फातिमा
देश में कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी का ताश के पत्तों की तरह बिखर जाना अपफसोसनाक है। कांग्रेस का यह बिखराव खुद कांग्रेस की गलत नीतियों, मंहगाई, घोटालों और भ्रष्टाचार का परिणाम था। लोकसभा चुनाव, 2014 आते-आते कांग्रेेस ऐसी लाचार, बेबस और सव्रिफय राजनीति से किनारे दिख रही थी, कि भाजपा के सत्ता में आने के रास्ते खुद ही खुल गये। भाजपा को जोर नहीं लगाना पड़ा और मरती हुई कांग्रेस ने थाल में परोस कर सत्ता भाजपा के हवाले कर दी।
भाजपा के 7-8 महीनों के मोदी शासन में मुसलमान, साम्प्रदायिकता और नफरत के उन सारे तीरों को सह चुके हैं जो उन पर आजमाये गये। यह तीर मुसलमान पहले भी आजमा चुके हैं। रामजादों से हिन्दू हो जाओ और हिन्दू राष्ट्र की पुरजोर वकालत के दर्मियान ‘दिल्ली सल्तनत’ का तजकिरा इसलिए भी जरूरी है कि जिसकी दिल्ली उसी की बिल्ली। यह सिपर्फ कहावत नहीं, झारखंड से जम्मू कश्मीर तक सरकार बनाने वाले मोदी दिल्ली जीतने का अर्थ बखूबी जानते हैं। लेकिन दिल्ली में दस लाख का सूट पहनने वाले मोदी को टक्कर मिली तो एक मामूली मपफलर मैन से। कांग्रेस मैदान में कहीं नहीं हैं।
लेकिन कांग्रेस और कांग्रेस के लोग मुसलमानों का लुभाने की कोशिशों में लगे हैं। इस लेख की जरूरत इसलिए पड़ी कि अब मुसलमानों को आंखें खोल कर कुछ बातों को समझने, समीक्षा करने और सहज रोकर सोचने की जरूरत है।
कांग्रेस का किरदार
कांग्रेस ने मुसलमानों के लिए कभी कुछ नहीं किया। लेकिन कांग्रेस पार्टी के साथ मुसलमानों का नाम इस तरह चिपक गया था कि आम आदमी इसे मुसलमानों की, या मुसलमानों के हित की पार्टी समझने की भूल करने लगा था। सच्चर कमेटी या रंगनाथ मिश्रा कमीशन द्वारा मुसलमानों के जख्म जरूर सहलाये गये, लेकिन कांग्रेस सरकार में मुसलमानों के लिए किया कुछ खास नहीं गया। हालांकि इसी मुसलमान-मुसलमान चिल्लाने ने भाजपा को, कट्टर हिन्दू वोट को एकजुट होने में मदद दी। और कांग्रेस के मुस्लिम प्रचार का सीधा लाभ हिन्दू महासभाइयों और आरएसएस की अगुवाई करने वाले लोगों ने उठाया।
आम आदमी पार्टी और केजरीवाल राजनीति के पहले चरण में बटला हाउस और मुसलमानों का मामला उठा कर अपना हाथ जला चुके थे। डर इसी बात का था कि आगे मुसलमानों से जुड़े किसी मामले को बड़े राजनीतिक मंच से उठाते हैं, तो देश के कट्टर हिन्दुओं तक इसका गलत मैसेज ठीक कांग्रेस की तरह जायेगा। मुसलमानों को जानना चाहिये कि यदि आम आदमी पार्टी को सत्ता में आना है तो वे सिख कार्ड, गरीबकार्ड खेलने के लिए आज़ाद हैं लेकिन मुस्लिम कार्ड उन्हें मंहगा पड़ सकता है। ऐसे में केजरीवाल ने जामा मस्जिद के इमाम बुखारी द्वारा मुसलमानों को उनकी पार्टी को वोट देने के आफर को अस्वीकार कर सटीक जवाब दे दिया कि आम आदमी पार्टी को आम आदमी की हिमायत चाहिए, किसी खास मजहब की नहीं. ऐसा हौसला दिखा कर केजरीवाल ने एक मिसाल कायम की है.
विकल्प कहां है
अभी मुसलमानों के पास ज्यादा आप्शन नहीं है, इसलिए उन्हें आम आदमी पार्टी का साथ देना होगा, और उनकी राजनीतिक मजबूरियों को भी समझना होगा। भाजपा के 9 माह के शासन काल का ग्राफ बहुत अच्छा नहीं है। विदेश यात्राओं से लेकर 10 लाख का सूट पहनने तक मोदी की लोकप्रियता में तेजी से गिरावट आई है। बाकी कसर दिल्ली चुनाव में उनकी गलत नीतियों ने पूरी कर दी, ऐसा लगता है। विज्ञापन में अन्ना को फूल-माला पहनाना, केजरीवाल के गोत्रा पर हमला, और दिल्ली समस्या की जगह पटरी से उतरी हुई राजनीति करना भी दिल्ली वालों के गले से नीचे नहीं उतरा। ऐसे माहौल में उनके अमेरीकी दोस्त बराक ओबामा उन पर हमला कर गये कि अगर गांध्ी होते तो भारत में जन्मा धर्मिक उन्माद उन्हें पसंद नहीं आता, यह इस बात का भी सबूत है कि अमरेरिका मोदी सरकार को किस दृष्टि से देख्ता है।
केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव के लिए केवल दिल्ली की मूल-भूत समस्याओं को ही जनता के सामने रखा। और दिल्ली की जनता ने मजहब से ऊपर उठ कर केजरीवाल को अभी तक इतना समर्थन तो दिया है कि टीवी चैनल्स के सर्वे में अभी भी आम आदमी पार्टी की बढ़त मौजूद है। 10 तारीख को क्या नतीजा आयेगा, यह कहना मुश्किल है। लेकिन यदि आम आदमी पार्टी को सफलता मिलती है तो भाजपा के विजय-रथ को करारा झटका लगेगा, और इसके बाद के बिहार, यूपी के चुनाव में भी नये समीकरणों के तलाशे जाने की उम्मीद बंध सकती है।
मुसलमान नहीं, आम जन रहें
यहां मुसलमानों को यह भी समझना होगा कि यदि आम आदमी पार्टी सत्ता में आती है तो मुसलमान बन कर नहीं, दिल्ली वासी बन कर अपनी समस्याओं को आगे लाना होगा। आम आदमी पार्टी पर मुसलमानों की पार्टी होने का दाग न लगने दें। भावुक बयानबाजी से आम आदमी पार्टी का हाल कांग्रेस की तरह न होने दें। अभी सिर्फ उस राजनीति को तरजीह देनी है, जो साम्प्रदायिकता और नफरत का कारोबार नहीं करती हो।
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