विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में चुनाव के बाद 16 वीं लोक सभा का गठन हो चुका है । देश के युवाओं ने, जिसमें पहली बार वोटर बननेवाले लाखों युवा भी शामिल है, बड़ी संख्या में वोट करके मोदी जी के नेतृत्व में गैर-कांग्रेसी एनडीए सरकार को केन्द्र में सत्तारूढ़ कर दिया । इस बीच आम बजट और रेल बजट भी आ गया । अनेक घोषणाएं हुईं, अनेक वादे भी किये गए । संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस का उत्तर देते हुए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी आशा के अनुरूप गरीबों और महिलाओं के साथ -साथ युवाओं के कल्याण के लिए सरकार की प्राथमिकता को रेखांकित किया ।
मिलन सिन्हा
अपनी चर्चा को युवाओं तक सीमित रखें तो प्रधान मंत्री का नजरिया बिल्कुल सही प्रतीत होता है । हमारा देश विश्व का सबसे युवा देश जो है । भारत दुनिया का ऐसा देश है, जहां युवाओं की संख्या सबसे अधिक है । 2011 की जनगणना के अनुसार 15 से 29 वर्ष के आयु वर्ग के युवाओं के संख्या 33 करोड़ है, जो देश के कुल आबादी का 27.5 % है । कहना न होगा, किसी देश का भविष्य तभी बेहतर हो सकता है, जब उस देश के युवाओं को बेहतर शिक्षा, ज्ञान , कौशल आदि के आधार पर सहज व उपयुक्त रोजगार उपलब्ध हों । लेकिन क्या हम अपने युवाओं के लिए ऐसा करना चाहते हैं और वाकई कर भी रहे हैं?
गौरतलब है कि जहां भारत में दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी रहती है , वहीँ यह भी एक कड़वा सच है कि दुनिया में सबसे अधिक बेरोजगार युवा भी हमारे देश में हैं । इससे भी अधिक चिंताजनक विषय यह है कि युवाओं में जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है, वैसे- वैसे ही बेरोजगारी की दर भी बढ़ रही है । उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे बड़े एवं राजनीतिक रूप से ज्यादा संवेदनशील, लेकिन औद्योगिक रूप से पिछड़ते जा रहे राज्यों में यह स्थिति और भी गंभीर है । राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन द्वारा वर्ष 2009-10 के आंकड़ों के आधार पर जारी रपट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र के स्नातक डिग्रीधारी लड़कों में बेरोजगारी दर 16.6 % और लड़कियों में 30.4 % रही । शहरी क्षेत्रों के ऐसे युवकों में यह दर 13.8 % और युवतियों में 24.7 % दर्ज की गई । सेकेंडरी लेवल के सर्टिफिकेट धारक ग्रामीण इलाके के युवकों में बेरोजगारी दर 5 % और लड़कियों में करीब 7 % रही, जबकि शहरी क्षेत्रों के युवकों में बेरोजगारी दर 5.9 % और महिलाओं में 20.5 % पाई गई । गत तीन वर्षों में इस स्थिति में सुधार के बजाय गिरावट ही हुई है ।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ( आई एल ओ ) के हाल की रपट ने देश के नौकरी बाजार की स्थिति को कमजोर बताया है । उक्त रपट में पिछले दो साल में बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि की बात कही गयी है, जो जमीनी हकीकत से मेल खाते हैं । यह तो हमें मालूम ही है कि भारतीय अर्थ व्यवस्था में वर्ष 2004 -09 के दौरान औसतन 9 % जी डी पी ( सकल घरेलू उत्पाद ) ग्रोथ दर था, जो कि विश्व के कई उन्नतशील देशों से बेहतर था, लेकिन इस अवधि में केवल दस लाख नौकरियां ही सृजित की जा सकीं, जो बेरोजगारों के विशाल फ़ौज के सामने बहुत ही नगण्य है। हाल ही में समाप्त हुए यूपीए -II के कार्यकाल के पांच वर्षों में नौकरियां और भी कम सृजित हुई, जब कि इसी दौरान इंजीनिरिंग व मैनेजमेंट का डिग्री हासिल करने वाले युवाओं की संख्या बेतहाशा बढ़ी । विडंबना यह है कि तकनीकी शिक्षा क्षेत्र में भी बेरोजगारी दर में बेतहाशा वृद्धि हो रही है । इससे इस धारणा को बल मिलना स्वाभाविक है कि युवाओं के लिए चलाए जा रहे स्किल डेवलमेंट मिशन के प्रयास भी रोजगार गारंटी का सर्टिफिकेट नहीं बन पा रहे हैं । तो सवाल है कि आखिर कोरी घोषणाओं से ज्यादा क्या अर्थ है इनका हमारी युवा पीढ़ी के लिए, जबतक रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं उपलब्ध होते ?
इस परिस्थिति में बड़ी संख्या में नौकरी व रोजगार सृजन करने हेतु मोदी सरकार के पहले बजट में जो दिशा संकेत दिये गये हैं, उससे संबंधित अबिलम्व एक ठोस समयबद्ध कार्ययोजना बनाये बगैर और उसपर पूरी निष्ठा व प्रतिबद्धता से अमल सुनिश्चित किये बिना क्या इस देश को स्कैम इंडिया से स्किल्ड इंडिया में तब्दील करना संभव व सार्थक हो पायेगा, जैसा कि मोदी जी का लक्ष्य है और करोड़ों बेरोजगार युवाओं को उम्मीद ?