इकोनामिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2014 की तुलना में 2017 में बैंक के प्रति खाता में जमा राशि में भयंकर गिरावट हुई है. जहां 2014 में प्रति खाता में अवसत जमा 21 हजार रुपये थे जो अब महज  3571 रुपये  रह गये हैं.

 

 

पत्रकार रवीश कुमार ने फेसबुक पर इस रिपोर्ट का सार पेश किया है. इसके अनुसार  इन खातों में औसत बैलेंस दिसंबर 2016 में सबसे ऊँचे शिखर पर पहुँचा जब नोटबंदी हुई जिसमें लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई जमा की। यह भी आरोप लगा कि काला धन जमा हुआ है। अभी तक जाँच होने की बात कही जा रही है।

इस वक्त जनधन खाते में उतना ही पैसा है जिससे मनरेगा के मज़दूरों को 22 दिनों का भुगतान हो सकता है। नोटबंदी के बाद हर खाते से पाँच रुपया निकल गया। ज़ीरो बैंलेस खाते में ख़ूब तेज़ी से गिरावट आई मगर अब फिर से इसकी संख्या मामूली ही सही लेकिन बढ़ती हुई देखी जा रही है।

2014 तक ज़ीरो बैंलेस खाता- 73.3%
2016- 24.1% और फ़रवरी 2017 में 24.9% हो गया है।

जनधन से पहले मार्च 2014 तक प्रति खाता औसत जमा राशि 21,156 रुपये थी। मदन कहते हैं कि इसका मतलब यह हुआ की उस वक्त तक लोगों के पास पैसा था, बिजनेस था और बैंक भी अच्छा कर रहे थे।

इस समय बैंकों में प्रति खाता औसत जमा राशि घटकर मात्र 3,571 रुपये हो गई है। औसत जमा राशि में इतनी भयंकर गिरावट का मतलब आप समझ सकते हैं। शायद यह भी कारण रहा होगा कि जीरो बैलेंस खाते की संख्या बोलने लगी।

मदन कहते हैं कि जनधन खाते को चलाने में बैंकों का लागत बढ़ गया। उन्हें इस कारण भी संकट का सामना करना पड़ रहा है। यह भी देखना होगा कि लोग बैंकिंग की आदत बना पा रहे हैं या नहीं । उससे पहले यह भी देखिये कि लोगों की क्षमता बैंकों में जमा करने ती है भी या नहीं ।

मदन सहनवीस CARE ratings के मुख्य अर्थशास्त्री हैं और अखबार ने इसे उनकी निजी राय कहा है। सबनवीस ने प्रधानमंत्री कार्यालय की साइट पर मौजूद जनधन को आंकडों के आधार पर विश्लेषण करने का दावा किया है।

By Editor


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