दिल्ली यूनिवर्सिटी विवाद के बाद सोशल मीडिया पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विरोध के बाद चर्चा में आई छात्रा गुरमेहर कौर ने ब्लॉग के जरिए खुद को तलाशने की कोशिश की है. gurmeharkaur.wordpress.com लिंक एड्रेस पर गुरमेहर ने अपनी अभिव्यक्ति की शुरूआत Who am I? से की है. गुरमेहर ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर इस लिंक को शेयर करते हुए लिखा कि आपने मेरे बारे में पढ़ा है. लेखों के आधार पर धरणाएं बनाई हैं. यहां मैं शब्दों में पहला ब्लॉग टाइटल लिख रही हूं – I am.
नौकरशाही डेस्क
गुरमेहर ने लिखा क्या मैं वो हूं जो ट्रोल्स मेरे बारे में सोचते हैं ? क्या मैं वैसी हूं जैसा मीडिया में बताया जाता है ? क्या मैं वैसी हूं, जैसा सेलिब्रिटीज सोचते हैं ? नहीं मैं, इसमें से कोई नहीं हो सकती. आपने जिस लड़की को टीवी स्क्रीन पर देखा, जो हाथ में प्ले कार्ड लिए थी, भौंहे तनी थी, हाथ में मोबाइल फोन के कैमरे पर टिकी आंखों वाली वह लड़कीए उसके विचारों की उत्तेजना जो उसके चेहरे पर चमकती है, निश्चित ही उसमें मेरी झलक है. वह उग्र लगती है, मैं उससे सहमत भी हूं.
उन्होंने आ्रगे लिखा कि मुझे जिस तरह से ब्रेकिंग न्यूज हेडलाइंस से जोड़ा गया, वह हेडलाइंस में मैं नहीं हूं. शहीद की बेटी, शहीद की बेटी, शहीद की बेटी. मैं अपने पापा की बेटी हूं. पापा की गुलगुल हूं, गुडिया हूं. दो साल की वह कलाकार हूं, जो शब्द तो नहीं समझती है, जो उसके पिता उसके लिए बनाया करते थे. मैं अपनी मां का सिरदर्द हूं. राय रखने वाली मूडी बच्ची, जिसमें मेरी मां की भी छाया है. मैं अपनी बहन के लिए पॉप कल्चर की गाइड हूं.
कौर ने आगे लिखा कि मैं अपनी क्लास में पहली बेंच पर बैठने वाली वह लड़की हूं जो अपने टीचर्स से किसी भी बात पर बहस करने लगती हैं. क्योंकि इसी में तो साहित्य का मजा है. मुझे उम्मीद है कि मेरे दोस्त मुझे पसंद करते हैं. वे कहते हैं कि मेरा सेंस ऑफ ह्यूमर ड्राई है, पर यह कारगर भी है. किताबें और कविताएं मुझे राहत देती हैं.
किताबों का शौक रखने वाली गुरमेहर ने इसी तरह कई बातों के जरिए खुद को एक बार फिर से दुनिया के समाने रखने की कोशिश की है. अंत में लिखा है – गुरमेहर ने लिखा कि पापा मेरे साथ नहीं हैं. वह 18 सालों से मेरे साथ नहीं हैं. 6 अगस्त, 1999 के बाद मेरे शब्दकोश में कुछ नए शब्द जुड़ गए. मौत, पाकिस्तान और युद्ध. मेरे पिता शहीद हैं, लेकिन मैं उन्हें एक ऐसे आदमी के रूप में जानती हूं जो कार्गो की जैकेट पहनते थे और जिनकी जेबें मिठाइयों से भरी होती थी. जिनका कंधा मैं जोर से पकड़ लेती थी, ताकि वे मुझे छोड़कर न चले जाएं. वे चले गए, फिर नहीं आए. मेरे पिता शहीद हैं. मैं उनकी बेटी हूं, लेकिन मैं आपके शहीद की बेटी नहीं हूं.