नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार निगम, बोर्ड और आयोगों को भंग करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। राज्य में करीब चार दर्जन निगम, बोर्ड, आयोग हैं। इनमें से कुछ को छोड़कर अधिकतर को सरकार सफेद हाथी मान रही है और इसे भंग करने का विचार कर रही है।
वीरेंद्र यादव
सत्ता के करीबी सूत्रों के अनुसार, पिछले आठ महीने से राजनीति कार्यकर्ताओं के ‘वित्त पोषण’ करने वाले दर्जनों निगम, बोर्ड, आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के पद रिक्त हैं। राजद, जदयू और कांग्रेस की आपसी सहमति से नियुक्ति के फार्मूले की तलाश में आठ महीने बीत गये, लेकिन इन पदों पर एक भी नियुक्ति नहीं हुई। सत्ता के गलियारे में नियुक्तियों की संभावना के लगातार कयाय जाते रहे। लेकिन आज तक इन पदों पर नियुक्ति नहीं हुई है।
इस बीच खबर मिल रही है कि ‘अर्थहीन’ हो चुके निगम, बोर्ड और आयोगों को सरकार भंग करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। इनके अध्यक्षों और सदस्यों का वेतन प्रतिमाह एक से डेढ़ लाख रुपये तक निर्धारित है। अनुमानित रूप से करीब एक करोड़ रुपये प्रतिमाह इनके वेतन पर खर्च हो रहा था। आर्थिक संकट से गुजर रही सरकार अब उनके वेतन को ढोने की स्थिति में नहीं है। वैसी स्थिति में इनको भंग के विकल्प पर विचार हो रहा है। हालांकि अंतिम रूप से अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है।