दशहरा हादसे पर सियासत जारी है लेकिन हमारे नेताओं को इस बात का ख्याल भी रखना चाहिए कि अगे दिवाली और छठ है, क्या हम अवाम की सुरक्षा की गारंटी दे सकते हैं?
अनिता गौतम, पॉलिटिकल एडिटर
गांधी मैदान में बदहवास भीड़ में 33 लोगों की मौत पर अब सियासी लाभ उठाने की कवायद चल रही है। तमाम राजनीतिक दल नफे – नुकसान के लिहाज से फूंक-फूंककर कदम आगे बढ़ा रहे हैं। भाजपा के सुशील कुमार मोदी ने तो इस पूरे मामले में पटना के एसएसपी और डीएम समेत चारो बड़े अधिकारियों पर कत्ल का मुकदमा दर्ज करने एवं सीएम जीतन राम मांझी से इस्तीफा तक की मांग कर दी है।
अपना-अपना राग
प्रशासनिक नाकामी के मुद्दे पर सुशील कुमार मोदी सीएम मांझीको उखाड़ने के लिए लोगों को लामबंद कर रहे हैं। जदयू मांझी का बचाव करते हुये दलित कार्ड के सहारे एक बड़े तबके को गोलबंद करने में जुटा है। इस समीकरण में विपक्ष के नेता सीपी ठाकुर का भी दलित प्रेम उमड़ आया है। उन्हों ने भी मांझी को क्लीन चिट दे दी है साथ ही यह भी कहा है कि सिर्फ दलित होने की वजह से उनका विरोध उचित नहीं है।
पहले के ताकतवर मुख्यमंत्री ने तो कई कई मौकों पर इस्तीफा नहीं दिया है। अब देखने वाली बात यह होगी कि विरोधी पार्टी अपने ही दल के नेता के इस बयान को किस तरह लेती है, क्योंकि मांझी पर सुशील कुमार मोदी के हमले को दलित विरोध के रूप में पेश किया जा रहा है। फिलहाल नीतीश कुमार इस हादसे पर पूरी तरह से मौन हैं और उनके इस मौन की व्याख्या कई स्तर पर की जा रही है। पहले भी नीतीश के मौन का मतलब एक तीर से कई निशाना रहा है।
बीजेपी अपनी पूरी शक्ति सीएम मांझी को हटाने में झोंक रही है, जिससे महादलितों के बीच यह संदेश जा रहा है कि चाहे बीजेपी कुछ भी कहे वह सूबे में एक दलित मुख्यमंत्री को कतई बदार्श्त करने के मूड में नहीं है, इसके साथ ही वर्तमान स्थितियों से निपटने की क्षमता को लेकर सीएम मांझी भी अग्निपरीक्षा के दौर से गुजर रहे हैं। पहले भी सीएम मांझी अपनी महत्वाकांक्षा का इजहार करते हुये कह चुके हैं कि 2015 के चुनाव के बाद कोई महादलित नेता भी मुख्यमंत्री बन सकता है।
गांधी मैदान भगदड़ मामले में राजद का स्टैंड भी अभी सीएम मांझी के पक्ष में ही है पर राजद इसकी आड़ में पार्टी बदलने वाले रामकृपाल यादव पर जरूर निशाना साधने में लगा हुआ है। मौत पर सियासत कोई नई बात नहीं है पर इस बार सियासत के साथ साथ मुक्म्मल व्यस्था की भी जरूरत है क्यों महज कुछ ही दिनों में दीपावली और महापर्व छठ होने वाला है। जाहिर है एक बार फिर बिहार में प्रशासन की चुस्ती और सामर्थ्य की परीक्षा होने वाली है।
दिवाली और छठ-सुरक्षा?
छठ के मौके पर भी गंगा किनारे लाखों की संख्या में लोग जुटते हैं। बेहतर होता कि राजनीतिक बयानबाजी और उठापटक से इतर तमाम राजनीतिक दल छठ के दौरान गंगा किनारे जुटने वाली भीड़ को लेकर फिक्रमंद होते। अब पटना किसी भी तरह के हादसे को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है। यहां के लोगों को राजनीतिक कलाबाजियों से ज्यादा भीड़ की सुरक्षा की फिक्र है। वैसे शहरी विकास मंत्री सम्राट चौधरी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ दीपावली और छठ की भावी तैयारियों की समीक्षा करने में जुटे हैं। लगातार हो रही अधिकारियों की बैठक की वास्तविक सफलता तभी मानी जा सकती है जब इन बैठकों में आम लोगों को भी शामिल किया जाये और उनकी भी राय ली जाये।
जाहिर है जिनके लिए व्यवस्था फिक्रमंद है उनकी सुरक्षा में कहां कमियां रह जाती हैं इस पर आम आवाम ही बेहतर बता सकता है। व्यवस्था चाक चौबंद होने की घोषणा और सरकारी दावों के भरोसे पर लोग अब कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं अत: उनके ठोस राय की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। कुल मिला कर यह उम्मीद की जानी चाहिए कि पिछली गलतियों से सरकार और प्रशासन सीख लेते हुए अब सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करेंगे.
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