मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पूरा कुनबा सुशासन, छवि, यूएसपी और जीरो टॉलरेंस का राग अलाप रहा है। यूएसपी के प्रति प्रतिबद्धता जता रहा है, लेकिन ‘नैतिकता’ की आड़ में भाजपा ने ऐसा ‘मकड़जाल’ बुना है कि उसमें उलझने के बाद नीतीश कुमार सारा यूएसपी भूल जाएंगे।भाजपा के बिहार से जुड़े केंद्रीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, भाजपा नीतीश कुमार और लालू यादव को दो छोर पर खड़ा करना चाहती है, ताकि बिहार की राजनीति त्रिकोणीय हो जाए। बाहर या भीतर से समर्थन का बयान भाजपा सिर्फ उकसाने के लिए दे रही है। उसका मकसद नीतीश को कुर्सी बचे रहने का आश्वासन देना भर है। यही वजह है कि उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के इस्तीफे को लेकर भाजपा आक्रमक रुख अपना रही है और नीतीश को लेकर भरोसे का ‘भ्रम’ बना रही है।
वीरेंद्र यादव
महागठबंधन के अटूट होने के दावे के बीच नीतीश कुमार यदि तेजस्वी यादव को बर्खास्त करते हैं तो राजद और कांग्रेस सरकार से अलग हो जाएंगे। इसके बाद राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी के सामने दो विकल्प होगा। पहला नीतीश कुमार को बहुमत साबित करने का मौका दें और दूसरा राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश करेंगे। गठबंधन के दो फांक होते ही भाजपा यह कहकर मौन साध लेगी कि यह महागठबंधन की आपसी लड़ाई है और भाजपा को इससे कोई लेना-देना नहीं। वैसी स्थिति में नीतीश बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे।
इसके बाद राज्यपाल राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं। लेकिन इस बीच राजद कांग्रेस और माले के 110 विधायकों के समर्थन के साथ सरकार बनाने का दावा कर सकता है। राजद को सरकार बनाने के लिए सिर्फ 12 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। वैसी स्थिति में नीतीश कुमार के लिए अपने विधायकों को बांधे रखना मुश्किल होगा। बदले माहौल में नीतीश कुमार उदय नारायण चौधरी के तरह स्पीकर विजय कुमार चौधरी को नहीं ‘हांक’ पाएंगे। यह दौर नीतीश कुमार के यूएसपी पर भारी पड़ जाएगा।
‘मांझी वेदना’ झेल चुके नीतीश अब हर कदम फूंक-फूंक कर उठा रहे हैं। तेजस्वी पर इस्तीफे के दबाव की राजनीति के बाद भी चुप हैं। विधायकों का संख्या गणित उनके पक्ष में नहीं है। यदि सरकार बचाने के लिए नीतीश कुमार भाजपा के दरवाजे पर जाते हैं तो ‘संघमुक्त भारत’ का सपना ‘कुर्सी प्रेम’ पर भारी पड़ जाएगा। वैसे स्थिति में नीतीश किस यूएसपी की बात करेंगे। दरअसल बिहार की राजनीति में महागठबंधन के बने रहने में ही नीतीश कुमार की सत्ता सुरक्षित है। भाजपा की ‘संजीवनी’ के सहारे सत्ता बनाये रखने की कोशिश नीतीश कुमार के लिए जोखिम भरा है और अविश्सनीय भी।