बिहार विधान सभा चुनाव में गठबंधन के ढीले पड़ते गांठ के बीच एनडीए में नेतृत्व का मुद्दा निष्कर्ष की ओर पहुंचने लगा है। भापजा ने सीएम पद के उम्मीदवार के विवाद के बीच चुनाव कंपेन को पीएम नरेंद्र मोदी पर केंद्रित कर दिया था। लेकिन भाजपा ने अपनी रणनीति में व्यापक फेरबल बदल किया है। पीएम की चार परिवर्तन रैलियों के बाद भाजपा ने स्थानीय नेतृत्व पर जोर दिया है। पार्टी में सीएम पद के कई दावेदार हैं, उनके लिए बिहार जीतने से ज्यादा महत्वपूर्ण अपनी सीट जीतना हो गया है। यही वजह है कि कभी खुद को सीएम मैटेरियल मानने वाले लोग अब विधान सभा की अपनी सीट बचाने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
वीरेंद्र यादव
चुनाव नहीं लड़ेंगे मोदी
भाजपा विधान मंडल दल के नेता सुशील कुमार मोदी विधान परिषद में बने रहेंगे। यानी वह विधान सभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। वे अब चुनाव प्रबंधन के सभी आयामों को लीड करेंगे और समन्वय बनाएंगे। प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडे उन्हें सपोर्ट करेंगे। दरअसल भाजपा के लिए सामाजिक चरित्र का अंतरविरोध बड़ी चुनौती है। इसमें आम सहमति सहज नहीं है। यही कारण है कि पार्टी नेतृत्व विवाद को हाशिए पर रखना चाहती है। लेकिन अपरोक्ष रूप से सुशील मोदी की ताकत मजबूत होती जा रही है। उनका पार्टी के अंदर विरोध भी है, लेकिन इसका कोई विकल्प भी नहीं है।
समन्वय में बड़ी भूमिका
एनडीए के घटक दलों के बीच समन्वय में प्रमुख भूमिका सुमो की ही है। पार्टी बिहार से जुड़े हर मामले में अंतिम फैसला लेने से पहले मोदी की राय जरूर लेना चाहती है। सीट बंटवारे से लेकर टिकट बंटवारे तक में उनकी ही सुनी जाएगी। सुशील मोदी संभवत: बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष कभी नहीं रहे हैं। इसके बावजूद उन्होंने खुद को बिहार भाजपा के लिए अनिवार्य बना रखा है। हालांकि पोस्टर कंपेन और चुनाव प्रचार के केंद्र पीएम नरेंद्र मोदी का ही जलवा रहेगा।