27 अगस्त को राष्ट्रीय जनता दल की ओर से देश बचाओ, भाजपा भगाओ रैली का आयोजन पटना के गांधी मैदान में किया गया था। भीड़ को लेकर राजद की ओर से ‘ऐतिहासिक दावे’ किये गये। भाजपा ने दावे का मजाक भी उड़ाया। इन दावे और प्रतिदावे के बीच ‘भाजपा भगाओ रैली’ से भाजपा गायब रही और लालू यादव नीतीश कुमार को ‘खदेड़ते’ रहे।
वीरेंद्र यादव
लालू यादव ने देश बचाओ, भाजपा भगाओ रैली की घोषणा राजद के राजगीर में आयोजित कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर में किया था। नीतीश कुमार को भी रैली के लिए मौखिक आमंत्रण दिया गया था, लेकिन आधिकारिक आमंत्रण के पूर्व ही नीतीश ने भाजपा की सवारी कर ली और लालू देखते रह गये। रैली की तैयारी में जुटे राजद के कार्यकर्ता भाजपा भगाने की जगह ‘नीतीश हटाने’ में जुट गये। इसका असर भी रैली में दिखा। एक पत्रकार ने कहा कि लालू यादव के भाषण से खबर के लिए इंट्रो निकालना भी मुश्किल हो गया, क्योंकि भाजपा भगाने को लेकर लालू यादव कुछ बोले ही नहीं। लालू पूरे भाषण में नीतीश को भगाने में जुटे रहे। इतना ही नहीं, लालू यादव चुनाव के लिए घोषणा भी मंच करने लगे।
राजद के मंच पर पहुंचे गैरराजद नेता केंद्रीय राजनीति से भाजपा को भगाने का संकल्प दुहराते रहे। रणनीति की संभावनाओं पर विचार रखते रहे। उत्तर प्रदेश के अखिलेश यादव और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी ने लालू के साथ खड़े होने के साथ भाजपा के खिलाफ मोर्चा बनाने की बात कही। लेकिन लालू यादव खुद भाजपा के खिलाफ बोलने से बचते रहे और नीतीश को लेकर हमलावर बने रहे। तो इसकी वजह भी थी। राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की एकता के लिए बुलायी गयी रैली ‘राजद वेदना’ में डूब गयी। लालू यादव का पूरा परिवार नीतीश के ‘धोखा और अवश्विास’ से आगे नहीं बढ़ पाया। विपक्षी एकता की बात करने आये गैरराजद नेता भी तेजस्वी यादव की संभावनाओं पर चर्चा के साथ ‘संवेदना’ के शब्द कहने को विवश रहे। तेजस्वी के प्रति सहानुभूति भी जतायी।
एक बार राजद के वरिष्ठ नेता ने हमसे कहा था कि ‘आपकी बिरादरी का युवा सब सनक गया है। रोड पर उतर आया है।’ यह ‘सनक’ रैली में दिखी भी। लेकिन युवाओं का उत्साह या आक्रोश भाजपा भगाने के लिए नहीं था। युवा तेजस्वी को सरकार से बाहर करने के खिलाफ आक्रोशित था। तेजस्वी यादव ने रैली के लिए कंपेन की शुरुआत ही ‘जनादेश अपमान यात्रा’ से की। इस जनादेश अपमान यात्रा में भाजपा कहीं नहीं थी। नीतीश निशाने पर थे। देश बचाओ भाजपा भगाओ रैली ‘जनादेश अपमान यात्रा’ का विस्तार था, यात्रा की पूर्णाहुति थी।
पटना के गांधी मैदान में आयोजित रैली का मकसद विपक्षी एकता को राष्ट्रीय फलक पर ले जाना था, लेकिन रैली नीतीश कुमार से आगे नहीं बढ़ पायी। लालू यादव विपक्षी एकता के बजाये ‘पारिवारिक सत्ता’ को स्थापित करने के लिए बेचैन दिखे। लालू की बेचैनी स्वाभाविक थी, लेकिन लालू यादव को पारिवारिक सत्ता को विस्तार देने के लिए भी राष्ट्रीय फलक की राजनीति में अपनी जमीन तलाशनी होगी, जगह बनानी होगी। उन्हें नीतीश के दायरे से बाहर निकलना होगा। तभी विपक्षी एकता की कोई सार्थक परिणति दिखायी देगी।