पिछले कई सालों से आक्रामक रही भाजपा क्या अब डर और भय की शिकार होती जा रही है. यह विरले अवसरों में से एक है जब उसने यह फैसला कर लिया है कि उसके प्रवक्ता उन टीवी बहसों में हिस्सा नहीं लेंगे जिसमें आम आदमी पार्टी के नेता शामिल हों.
भाजपा का यह फैसला उसकी कुंद होती धार का परिचायक है या किसी एक पार्टी से उसके भयभीत होने का,यह तो खुद भाजपा जाने लेकिन टीवी बहसों में आपके नेताओं संग शामिल नहीं होने की सूचना राजदी सरदेसाई ने दी है.
राजदीप ने ट्विट किया है कि भाजपा ने फैसला किया है कि उसके प्रवक्ता उन टीवी बहसों का हिस्सा नहीं होंगे जिनमें आम आदमी पार्टी के प्रतिनिधि शामिल हों.
लोकतंत्र में बहसें जरूरी हैं. यह भाजपा भी जानती है. न सिर्फ जानती है बल्कि आज वह सत्ता के जिस मुकाम पर है, वहां पहुंचने में उसके प्रभावशाली बहसों, विचारों और तर्कों का ही नतीजा है. लेकिन सत्ता के शिखर पर पहुंची इस पार्टी के इस फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं. क्या उसके पास जवाब देने के लिए तथ्यों की कमी पड़ गयी है? क्या वह आप से भयभीत है? अगर भयभीत है तो फिर उस पर लगने वाले आरोपों पर वह क्या और कैसे जवाब देगी?
इस बीच भाजपा के नेशनल सेक्रटरी श्रीकांत शर्मा ने कुछ स्पष्टिकरण दिया है. उन्होंने कहा है कि आप एक गैरजिम्मेदार पार्टी है जो अधाराहीन आरोप लगा कर भा खड़ी होती है. उनके आरोपों पर जवाब दीजिए तो वे चुप हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि यह टीवी चैनलों पर है कि वह अपने कार्यक्रमों में किसको बुलाते हैं लेकिन साथ ही यह हमारा अधिकार है कि हमारे नेता किस कार्यक्रम में जायें और किस कार्यक्रम में न जायें