हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं की पुस्तकों के प्रकाशनों में पिछले कुछ वर्षों के दौरान न केवल कमी आयी है बल्कि यह जिज्ञासु पाठकों की आवश्यकताओं को पूरा करने में भी नाकाम रहा है। मीडिया स्टडीज ग्रुप ने दिल्ली में पिछले चार वर्ष के दौरान दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेलों की निर्देशिकाओं के तुलनात्मक अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है।
ग्रुप की जारी विज्ञप्ति के अनुसार वर्ष 2013, 2014, 2016 और 2017 के विश्व पुस्तक मेलों के तुलनात्मक अध्ययन से पता लगा है कि लोगों में भारतीय भाषाओं में पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न स्तरों पर कार्य करने के वास्ते सरकार के उच्चतर शिक्षा संस्थान के अंतर्गत 1957 में स्थापित नेशनल बुक ट्रस्ट हर साल विश्व पुस्तक मेलों का आयोजन करने के बाद भी भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने में कामयाब नहीं हो पाया है। वास्तविकता यह है कि पिछले चार विश्व पुस्तक मेलों में प्रदर्शित भारतीय भाषाओं के प्रकाशनों की संख्या घटी है। वर्ष 2013 में प्रदर्शित प्रकाशनों की संख्या 1098 थी, जो 2014 में कम होकर 1027, 2016 में 850 और इस साल घटकर 789 रह गयी।
वर्ष 2015 के पुस्तक मेले की निर्देशिका उपलब्ध नहीं होने के कारण इस साल के आंकड़े उपलब्ध नहीं हो पाये हैं। अध्ययन का यह निष्कर्ष जन मीडिया के नवीनतम अंक में प्रकाशित किया जा रहा है। अध्ययन के अनुसार वर्ष 2013 के विश्व पुस्तक मेले में केवल एक हजार 98 स्टाल और स्टैंड ही लगाये गये थे, जिनमें तीन असमी, पांच-पांच बंगला और तमिल, 643 अंग्रेजी, दो गुजराती, 323 हिन्दी, एक-एक कश्मीरी, मैथिली और ओड़िया, 12 मलयालम, दो -दो मराठी और तेलुगु, छह पंजाबी, 18 संस्कृत, 44 उर्दू और 30 विदेशी भाषाओं के थे। इससे स्पष्ट है कि अंग्रेजी की तुलना में भारतीय प्रकाशकों की उपस्थिति लगभग आधी ही थी।