गांधी के बताये रास्ते से माॅरीशस को मजबूती मिली
‘‘मां के साथ घास भी काटी, पिता के साथ कुदला भी चलाये’’
माॅरीशस के प्रसिद्ध लेखक रामदेव धुरंधर ने अपने संस्मरण सुनाये।
पटना, 5 फरवरी। माॅरीशस के नामी साहित्यकार ने अपने बचपन के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि 1854 में उनके परदादा भारत से माॅरीशस पहुंचे थे। गोरों, जिसमें फ्रांसीसी और अंग्रेज दोनों शामिल थे, ने जुल्म ढ़ाया। गरीबी में मां के साथ घास काटी और पिता के साथ कुदाल भी चलाये।
इस जुल्म और शोषण में वे ‘होशियार’ लोग भी शामिल थे, जो भारत से गये थे। श्री धुरंधर आज जगजीवन राम शोध संस्थान में अपने बचपन, जीवन-संघर्ष और भारत के साथ जुड़ाव पर बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि 1901 में महात्मा गांधी माॅरीशस गये थे। उनके बताये विचार से देश मजबूत हुआ। भारत उनके लिए एक संस्कृति की तरह है। श्री धुरंधर ने बताया कि ‘गोदान‘ पढ़ने के बाद साहित्य के तरफ रूझान हुआ।
हिंदी में लिखना शुरू किया। उन्होंने कहा कि वे अपने देश में शब्दों के कुछ बीज बोते हैं और भारत में उसका फसल काटते हैं। विदित हो कि पिछले वर्ष का श्रीलाल शुक्ल पुरस्कार उन्हें प्राप्त हुआ है।
श्री रामदेव धुरंधर ने बताया कि पानी का जहाज 3-4 महीने में माॅरीशस पहुंचते थे, तब तक कई संगी-साथी बिछड़ गये होते थे। वहां उतरते ही समूह में बांटकर पिटाई शुरू हो जाती थी। खाना नहीं, पानी मिलता था। फ्रांसीसी गोरे लोगों का जेल होता था। ये भारतीय चतुर ‘मेठों’ के माध्यम से शोषण करते थे, जो आज वहां करोड़पति बन गये हैं। इनका काला इतिहास रहा है।
श्री धुरंधर ने कहा कि माॅरीशस के जागरण में कबीर का बड़ा योगदान है। लेकिन अब वहां पुराने लोग ही भोजपुरी बोलते हैं। वहां की नई पीढ़ी फ्रांसीसी भाषा की ओर मुखातिब है।
उन्होंने कहा कि 1834 से 1912 तक भारत से करीब चार-पांच लाख लोग माइग्रेट होकर माॅरीशस गये। आज वहां की आबादी 13 लाख है।
आयोजन में डाॅ0 रामवचन राय तथा प्रो0 यादवेन्द्र ने भी अपने विचार रखे। अतिथियों का स्वागत संस्थान के निदेशक श्रीकांत ने किया। संचालन नीरज ने किया।
प्रश्न पूछने वालों में अवधेश प्रीत, अनुपम प्रियदर्शी, शशि आदि शामिल रहे। मौके पर सुकांत नागार्जुन, प्रणव चैधरी, नवेंदु, रेशमा, शेखर, विद्याकर झा, पवन सहित कई साहित्यकार एवं बुद्धिजीविगण मौजूद थे।