कथा-लेखन की हृदय-स्पर्शी प्रतिभा के लिए संसार के महान लेखकों में परिगणित होने वाले हिन्दी और उर्दु के महान लेखक प्रेमचन्द देश के पहले साहित्यकार हैं, जिन्होंने भारत के जनमानस का नब्ज पकड़ा था, और कहानियों का विषय आमजन और उसके सरोकार को बनाया था। उसके पात्र भी पाठकों के जाने-पहचाने से लगते थे। प्रेमचन्द की कहानियाँ और उपन्यास महज मनोरंजन की वस्तु नहीं, बल्कि संसार को समझने की नयी दृष्टि देनेवाला चिर-स्थायी साहित्य हैं।
यह बातें कथा-सम्राट की जयंती के अवसर पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह और लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, प्रेमचन्द ने हिन्दी कहानी और उपन्यास को एक नया मोड़ दिया। उनकी अद्भुत प्रतिभा से प्रभावित होकर बंगला के प्रख्यात साहित्यकार शरतचन्द्र चटोपाध्याय ने उन्हे ‘कथा-सम्राट’ कहकर विभूषित किया। उनकी कहानियां और उपन्यास आज भी प्रासंगिक हैं। आज भी उनके पात्र समाज में यत्र-तत्र-सर्वत्र मिल जाते हैं। आज भी कहीं गोदान, कहीं गबन, कही कफ़न तो कहीं शतरंज के खिलाड़ी तो कहीं ईदगाह की कथा और पात्र मिल जाते हैं। मर्म को अंतर तक हिला देनेवाली उनके संवाद आज भी कठोर मन को भी झकझोर देते हैं।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त ने मुंशी प्रेमचन्द के जीवन और उनकी रचनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। डा शंकर प्रसाद ने प्रेमचन्द को जन-सरोकारों का महान व्याख्याकार बताते हुए उनकी कथाओं पर बनी फ़िल्मों पर चर्चा की तथा ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में प्रसिद्ध फ़िल्मकार सत्यजीत राय के कार्यों की सराहना की। डा कुमार मंगलम ने कहा कि प्रेमचन्द का साहित्य साम्राज्यवाद, सामंतवाद एवं पूंजीवाद के घिनौने गठजोड़ के खिलाफ़ विद्रोह का बिगुल था। वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य, डा वासुकी नाथ झा तथा बच्चा ठाकुर ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा गोष्ठी में, पं शिवदत्त मिश्र ने ‘ईश्वर का न्याय’, डा कल्याणी कुसुम सिंह ने ‘एसी की ठंढक’, डा भगवान सिंह ‘भास्कर’ ने ‘चरित्र’ नाम से, डा मेहता नगेन्द्र सिंह ने ‘विनाश के औजार’, राजीव कुमार सिंह ‘परिमलेन्दु’ ने ‘कीमत’ शीर्षक से, नम्रता कुमारी ने ‘सुपुत्र’ शीर्षक से, अमियनाथ चटर्जी ने ‘हत्यारा’ शीर्षक से, डा रमाकांत पाण्डेय ने ‘नक्कटी सूपनेखिया’ शीर्षक से, प्रभात कुमार धवन ने ‘होली’ शीर्षक से, लता सिन्हा ज्योतिर्मय ने ‘आत्मबल’ शीर्षक से, शालिनी पाण्डेय ने ‘दोस्ती’ शीर्षक से, जय प्रकाश पुजारी ने ‘बैरमदास’ शीर्षक से, सागरिका राय ने ‘घास’ शीर्षक से, डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने ‘पेपर की कहानी’ शीर्षक से तथा पूनम आनंद ने ‘पुण्य’ शीर्षक से कथाओं का प्रभावशाली पाठ किया।
इस अवसर पर शायर आरपी घायल, शंकर शरण मधुकर, कौसर कोल्हुआ कमालपुरी, आनंद किशोर शास्त्री, कृष्णमोहन प्रसाद, शशिभूषण कुमार, कृष्ण कन्हैया, डा मनोज कुमार तथा अतुल प्रसन्न समेत बड़ी संख्या में साहित्यकार व प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।