आज भारत और पाकिस्तान के बीच पारिस्परिक घृणा पर आधारित देशभक्ति की परीक्षा हो रही है. ऐसी देशभक्ति जो नफरत और घृणा पर आधारित हो वहां तर्क और विवेक की गुंजाईश कम होती है. वहां मूर्खता हावी रहती है. और मूर्खता को अगर देशभक्ति की भावना से जोड़ दिया जाये तो फिर इसका अपना बाजार होगा. जिससे अरबों रुपये का व्यापार होना स्वाभाविक है. आज आईसीसी क्रिकेट के इतिहास में मुनाफे की नयी इबारत लिखी जायेगी.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
कम्पनियां आज कमायेंगी. मालामाल होंगी. ऐसी कमाई जो पारस्कपरिक घृणा पर आधारित हो तो क्या यह सत्य नहीं कि ये कार्पोरेट कम्पनियां इस घृणा के व्यापार को बेचें ? घृणा की इस भावना को बढ़ायें. याद कीजिए जब चैम्पियंस ट्राफी की शुरुआत हुई थी तो जी न्यूज ने भारत पाकिस्तान के बीच सीधे क्रिकेट मुकाबले के खिलाफ अभियान चलाया था. यह बताया था कि जो देश हमारे सैनिकों को मारे, हमार खिलाफ जिहाद छेड़े उससे क्रिकेट मैच कैसा? उसे इस बात से मतलब कहां कि भारत और पाकिस्तान के बीच मैच हो न हो, उसे भावनाओं की ज्वाला को लहकाये रखना है, यही उसकी ड्युटी है.
धोखेबाजी के आवरण में ढ़का राष्ट्रवाद
क्या हम भारतीयों, या पाकिस्तानियों को अपने देश से सिर्फ इस लिए मुहब्बत करनी चाहिए कि हम एक दूसरे को दुश्मन देश मानते हैं. एक दूसरे से घृणा करते हैं. और इस पारस्परिक घृणा का जो बाइप्रोडॉक्ट है उसे हम अपने देश के प्रति देश भक्ति का नाम दे लेते हैं. क्या हमारी देशभक्ति राष्ट्रवाद के धोखेबाजी के आवरण में छिपी नहीं है? ऐसा इस लिए कि मनमोहन सिंह के जमाने में अगर हमारे एक सैनिक का सर पाकिस्तान काट कर ले जाता है तो हम, पाकिस्तान को बर्बाद कर देने की कस्में खाते हैं, प्रधान मंत्री को भद्दी गालियां देते हैं, और इस देश के मौजूद मंत्री शालीनता की हद को पार करते हुए कहती हैं कि पीएम को चूड़ी गिफ्ट करेंगी. लेकिन जब पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में दिन रात सैनिक मारे जायें.
पाकिस्तान की फौज हमारे जवान को छलनी कर दे. उनकी गर्दनों को, सरों को टुकड़े-टुकड़े कर दे और शव को क्षतविक्षत कर दे. सैनिक का सर काट कर अपनी सीमा में ले जाये तो भी हम खामोश बने रहते हैं. कोई प्रतिक्रिया नहीं देते. ऐसा जैसे कुछ हुआ ही नहीं. तो यह कैसी देशभक्ति है जब मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हमारे जवान मारें जायें तो हमारा खून उबाल मारने लगे, और नरेंद्र मोदी के जमाने में हमारे जवान टुकरे- टुकरे कर दिये जाये तो हमारे सर पर जू तक न रेंगे? देशभक्ति दोमुहा नहीं हो सकती. देशभक्ति दोहरी नहीं हो सकती. यह नकली देशक्ति है.
पाकिस्तान और भारत के बीच में मैच का जो भी नतीजा होगा. करोंड़ों दिनों पर जीत या हार अलग अलग प्रतिक्रिया के रूप में आयेंगे. भारत अगर जीता तो भारतीयों के दिलों में देशभक्ति का ज्वार उफाने मारेगा. और अगर पाकिस्तान जीता तो देशभक्ति एक नयी मूर्खता को प्राप्त होगी जो यह कहेंगे कि कि भारत श्रीलंका से हार जाता, पाकिस्तान से क्यों हारा? और तब भारत के उन खिलाड़ियों की मां- बहन की जा सकती हैं जिनकी गलतियों के कारण भारत हारा. ऐसी मूर्ख भक्तों की देशभक्ति तब कहां जाती है जब इस देश को सैंकड़ों साल तक गुलाम बनाये रखने वाले इंग्लैंड से भारत हार जाता है तो उनको कोई दर्द नहीं होता, लेकिन भारत के ये देशभक्त उस समय पीड़ा सहन करने में बैचैन हो जाते हैं जब भारत, पाकिस्तान से हार जाता है.
इन मूर्ख देशभक्तों की बदौलत किस को क्या लाभ हो यह अलग बात है, पर आईसीसी, क्रिकेट के स्पांसर, और विज्ञापनदाताओं की तो आज बल्ले-बल्ले होगी ही.