वक्ताओं को सुनते राजधानीवासी

-आद्री के सिल्वर जुबली सेलेब्रेशन में बोले एम्सटर्डम इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के प्रोफेसर जोहैनन्स बर्मन
पटना

वक्ताओं को सुनते राजधानीवासी
वक्ताओं को सुनते राजधानीवासी

क्या वादे इसीलिए किये जाते हैं कि उसे डिलिवर नहीं किया जा सके? अभी जो केंद्र सरकार काम कर रही है उसने भी 300 मिलियन जॉब देने का वादा किया है. क्या ये वादे पूरे किये जा रहे हैं? यदि गरीबी को हटाना है तो नये जॉब हर हाल में देने होंगे. मनरेगा जैसी स्कीम को और इफेक्टिव बनाना होगा. उसमें बालश्रम नहीं हो यह भी देखना होगा. मैं यह पूछता हूं कि जब गरीबी हटाओ का नारा बरसों पहले एक सरकार ने दिया तो उसका क्या हुआ? इससे यह पता चलता है कि भारत में जो वादे किये जाते हैं उसे पूरा नहीं किया जाता है. ये बातें आद्री के सिल्वर जुबली सेलेब्रेशन में एम्सटर्डम इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के प्रोफेसर प्रो जोहैनन्स बर्मन ने कही. उद्घाटन के पहले सत्र में उन्होंने अनडिजर्विंग पुअर विषय पर बोलते हुए कहा कि असमान बंटवारे का वह दृश्य अभी के भारत में दिखाई देता है.
आज गुजरात मॉडल बनता जा रहा देश के विकास का मॉडल
उन्होंने गुजरात से जुड़े अध्ययन का जिक्र करते हुए कहा कि कभी विकास का गुजरात मॉडल एक स्टेट का मॉडल हुआ करता था आज यह धीरे धीरे पूरे भारत देश का मॉडल होता चला जा रहा है. उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि केवल आर्थिक विकास या कहें पैसे का विकास ही क्या संपूर्ण विकास है? जहां मानवीय विकास की अवधारणा पीछे छोड़ दिया जाता है. ऐसा विकास अधूरा है.
आज के भारत में असमानता ज्यादा
आज का भारत मुझे 1930 के यूरोप की याद दिलाता है. ऐसा यूरोप जिसमें गरीबी थी, असमानता अपने चरम पर थी और इन सबके बीच राष्ट्रवाद का तड़का था. कुछ इसी तरह अभी भारत में दिखाई दे रहा है. गरीबी है और अमीरी भी है लेकिन दोनों के बीच गैप की गहरी खाई है. अब आप देखिये कि कैसे इसके बाद यूरोप में दूसरे विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि बनी और किस प्रकार परिवर्तन आया.

By Editor


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