राजनीति में किस्मत की हेरफेरी का कोई जवाब नहीं। संभावनाओं की आंख मिचौली भी कम मजेदार नहीं होती है। राबड़ी देवी को ही देख लें। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद विपक्षियों ने कितना बखेड़ा खड़ा किया था। लेकिन उनके साथ काम करने वालों की किस्मत कितनी मजबूत रही होगी। उद्योग मंत्री डॉ भीम सिंह भी पहले राबड़ी देवी के निजी सचिव हुआ करते थे, बाद में विधान पार्षद बन गए। उनके बाद राबड़ी देवी के निजी सचिव भोला यादव भी बिहार विधान परिषद के सदस्य बन गए।
वीरेंद्र यादव
भीम सिंह और भोला यादव में कार्य व्यवहार में काफी अंतर रहा है। भीम सिंह का सामाजिक संघर्ष उनकी पहचान थी। वह अध्यापन कार्य करते हुए राजनीति में आए। लालू यादव ने उन्हें पहले पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य बनाया। इसके बाद मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का निजी सचिव बना दिया। 2005 में सत्ता बदली तो राबड़ी देवी नेता प्रतिपक्ष बन गयीं। 2006 के विधान परिषद चुनाव में लालू यादव ने भीम सिंह को विधान परिषद में भेज दिया। बाद में वह राजद छोड़ जदयू में शामिल हो गए। दुबारा सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें अपनी सरकार में शामिल कर लिया।
भोला यादव 1990 के बाद लालू यादव के संपर्क में आए थे। मुख्यमंत्री आवास में प्रवेश बढ़ने के बाद भोला यादव लालू यादव के करीब आए और फिर उनके कार्यालय में सक्रिय हो गए। 1997 में जब राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं तो वह उनके निजी सचिव बन गए। उसके बाद लगातार वह लालू यादव व राबड़ी देवी के निजी सचिव की भूमिका का निर्वाह करते रहे। लालू परिवार के हर अच्छे-बुरे वक्त में भोला यादव साया के तरह खड़े नजर आए। वह परिवार के सबसे विश्वस्त व्यक्ति बन गए। बाद में राबड़ी आवास के पर्याय बन गए।
विधान परिषद में राजद के उम्मीदवार के लिए मीसा भारती के नाम की चर्चा थी। लेकिन इस नाम पर परिवार में ही विवाद हो गया। वैसी स्थिति में लालू यादव ने भोला यादव के नाम पर सहमति दे दी और उनका नाम तय हो गया। सूत्रों ने बताया कि पार्टी संगठन और महागठबंधन की राजनीति में उनका कद और बढ़ सकता है।
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