‘बिहार केसरी’ डॉक्‍टर श्रीकृष्‍ण सिंह की आज जयंती है। बिहार के प्रथम मुख्‍यमंत्री श्रीबाबू का बिहार के नवनिर्माण में महत्‍वपूर्ण योगदान है। पहले वे बिहार के नेता थे, अब भूमिहार के नेता बनकर रह गये हैं। उनकी जयंती पर समारोह का आयोजन भूमिहार नेता ही अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिए करते हैं। आज भी लालू यादव समर्थक कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद सिंह और भाजपा का आशीर्वाद प्राप्‍त भूतपूर्व विधान पार्षद महाचंद्र प्रसाद सिंह ने अलग-अलग जयंती समारोह का आयोजन किया था। दोनों कार्यक्रमों को आयोजित करने वाली संस्‍थान का नाम भी लगभग एक समान ही था।

वीरेंद्र यादव

अखिलेश सिंह और महाचंद्र सिंह दोनों अपनी नयी जमीन और नया सत्‍ताकेंद्र की तलाश में हैं। अखिलेश सिंह कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष बनना चाहते हैं तो महाचंद्र प्रसाद सिंह भाजपा में जाने की राह तलाश रहे हैं। दोनों के लिए शक्ति का प्रदर्शन जरूरी है। इस मामले में जयंती के मौके पर अखिलेश सिंह महाचंद्र सिंह पर भारी पड़ते दिखे। अखिलेश सिंह ने पूरे पटना को बैनर औ‍र होर्डिंग से पाट दिया था तो महाचंद्र सिंह का प्रचार कैंपेन जहां-तहां नजर आ रहा था। अखिलेश सिंह ने नवनिर्मित विशाल ‘बापू सभागार’ में जयंती समारोह का आयोजन किया तो महाचंद्र सिंह ने श्रीकृष्‍ण मेमोरियल हॉल में समारोह का आयोजन किया। आज बापू सभागार के तुरंत बाद हम श्रीकृष्‍ण मेमोरियल हॉल में गये तो बापू सभागर की तुलना एसकेएम हॉल काफी छोटा लग रहा था। जबकि पहले किसी कार्यक्रम की सफलता का माप ही एसकेएम हुआ करता था। बापू सभागार की गहमागहमी के बीच एसकेएम शांत लग रहा था।

अखिलेश सिंह ने अपने कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि के रूप में लालू यादव को आमंत्रित किया था। इस कारण मीडिया का आकर्षण भी बापू सभागार बन गया। जबकि महांचद्र प्रसाद सिंह के कार्यक्रम में मेघालय के राज्‍यपाल गंगा प्रसाद और पूर्व सीएम जीतनराम मांझी थे, लेकिन मंच की पहचान भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ही थे। महांचद्र प्रसाद सिंह ने अपने कार्यक्रम को एनडीए के कार्यक्रम के रूप में प्रचारित किया था, लेकिन इसमें मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार नजर नहीं आये। महाचंद्र सिंह ने मुख्‍यमंत्री को आमंत्रित ही नहीं किया या सीएम ने आमंत्रण अस्‍वीकार कर दिया, स्‍पष्‍ट नहीं हो पाया है।

 

श्रीबाबू के नाम पर दोनों सभागारों से विरोधियों पर तीर भी छोड़े गये। श्रीबाबू के प्रति निष्‍ठा भी जतायी गयी, लेकिन भूमिहारों के अखाड़े में अखिलेश सिंह ही भारी पड़ते दिखे। भीड़ में भी और प्रचार में भी। सभागार तो खुद अपने आप में भारी बन गया है।

 

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427