उच्चतम न्यायालय ने आज व्यवस्था दी कि भूमि अधिग्रहण के संबंध में तीन न्यायाधीशों की पीठ का फैसला, जिसको तीन न्यायाधीशों की पीठ ने ही रद्द दिया है, उससे संबंधित मामले की सुनवाई अब उच्चतम न्यायालय की वृहद पीठ करेगी। उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था तीन न्यायाधीशों के भूमि अधिग्रहण के संबंध में दिये गये फैसले को दूसरी तीन न्यायाधीशों की पीठ की ओर से रद्द कर दिये जाने से अप्रत्याशित स्थिति उत्पन्न होने के बाद दी है।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने इस मामले को वृहद पीठ को सौंपने के लिए यह मामला मुख्य न्यायाधीश के समक्ष भेज दिया था। इस पीठ ने कहा कि वृहद पीठ यह फैसला करेगी कि आठ फरवरी को तीन न्यायाधीशों की पीठ का भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 की व्याख्या करना सही था या नहीं।
न्यायमूर्ति मदन लोकुर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने बुधवार को संकेत दिया था कि न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने आठ फरवरी को तीन न्यायाधीशों की पीठ के 2014 में दिये गये फैसले को रद्द करके न्यायिक अनुशासन का उल्लंघन किया। न्यायमूर्ति लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक अंतरिम आदेश पारित किया कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की संबंधित पीठ भूमि अधिग्रहण से संबंधित मुआवजे संबंधी याचिकाएं स्वीकार न करें। इस फैसले से न्यायमूर्ति मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के आठ फरवरी फैसले पर रोक लग गई।