पटना स्थित इंडियन इंस्टिच्युट ऑफ हेल्थ एजुकेश ऐंड रिसर्च के निदेशक प्रमुख चार महीने से जेल में हैं. संस्थान के सिस्टम प्रशासक ने इस संबंध में अपना पक्ष विस्तार से रखा है.
डॉ॰ अनिल सुलभ जैसा उदार और आदर्शवादी समाजसेवी, जो एक प्रतिष्ठित साहित्यकार भी हैं। लगभग चार महीने से जेल मे हैं शासन और व्यवस्था पर कितना वडा कलंक और समाज के लिए कुछ अच्छा सोचने वालोके लिए कितना लज्जा जनक है। यह वही वता सकते है, जिन्होने अनिल सुलभ को जाना है स्वर्गीय पत्रकार अंजनी कुमार विशाल ने डॉ॰ सुलभ को, अपने एक आलेख मे “राक्षसो की भीड़ मे एक जिंदा आदमी” बताया था।
साहित्य सम्मेलन को दी ऊंचाई
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन को अपराधियों के शिकंजे से छुड़ा कर पुनः उसकी पुरानी गरिमा और ऊँचाई प्रदान करने का पुरुषार्थ उनके सिवा और कौन कर सकता था। सम्मेलन का 35वां महाधिवेशन इसका प्रमाण है,जिसकी चर्चा सम्पूर्ण बिहार और भारतवर्ष मे ही नहीं वल्कि अंतर्राष्ट्रिय स्तर पर हुई । वैसे रचनात्मक दृष्टि रखने वाले और उनके साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक संस्थाओं के अध्यक्ष और संरक्षक के रूप मे समाज को गतिवान रखने वाले साशवत कार्यो को संरक्षण पोषण देने वाला व्यक्ति लगभग चार महीने से जेल मे है और, उन्हे इस अपराध की सजा दी गयी है जो उन्होने किया ही नहीं । मगध विश्वविद्यालय केपापों की सजा उन्हे दी जा रही है और यह सब उनसे व्यक्तिगत सत्रुता रखने वाले लोगों ने उनके बेउर स्थित संस्थान के कुछ आधा दर्जन उन छात्रों का दुरूप्योग कर षड्यंत्र पूर्वक किया, जो छात्र संस्थान प्रबंधन द्वाराअनुशासनहिनता के आरोप मे दंडित किए गए थे और वदले की भावना रखते थे ।
विश्वविद्यालय का विवाद
जानने वालो को यह पता था की कुलाधिपति कार्यालय द्वारा बिहार के सभी विश्वविद्यालयों को उन पाठ्यक्रमो की परीक्षा रोक देने का निर्देश दिया गया था जिनके पाठ्यक्रम-अध्यादेश कुलाधिपति द्वारास्वीकृत नहीं कराये गए थे। यह वात अब छिपी नहीं रही की बिहार के सभी विश्वविद्यालयों द्वारा विगत 10-15 वर्षो से विभिन्न तकनीकी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमो का संचालन किया जा रहा था जिनके पाठ्यक्रमअध्यादेश कुलाधिपति से स्वीकृत नहीं कराये गए थे। पाठ्यक्रम के अध्यादेश जिसे Regulation and Ordinance कहा जाता है तैयार करने का काम विश्वविद्यालय का है, और उसका ही काम है की उसकी स्वीकृतिकुलाधिपति से प्राप्त करे।
यह एक संयोग की बात है की ऐसे दर्जनो पाठ्यक्रमो से कुछ पाठ्यक्रम डॉ॰ सुलभ के उक्त संस्थान मे चलाए जा रहे है ये सभी पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार मगध विश्वविद्यालय केअंतर्गत राज्य सरकार से स्थायी संबंधन प्राप्त है। परीक्षा पर रोक लगाए जाने के बाद विश्वविद्यालय द्वारा आनन फानन मे दर्जनो Regulation एक साथ राजभवन भेजे गए। और ऐसे ही राज्य के अन्य विश्वविद्यालय द्वारा किया गया। नतीजतन राजभवन मे गठित उससे संबन्धित परामर्शदात्री समिति के समक्ष सैकड़ो की संख्या मे Regulation की संचिकाए जमा हो गई जिनका निबटारा सिघ्रता से संभव नहीं था।
कहां है दोष
परिणाम ये हुआ कि परीक्षा पर रोक बनी रही और विद्यार्थियों का सत्र 2013-14 से विलंबित हो गया। जिन जिन पाठ्यक्रमो के Regulation स्वीकृत होते गए उसकी परिक्षए फिर से आरंभ हुई। शेष की प्रतीक्षा हो रही है इस कार्यवाही मे विश्वविद्यालय का रवैय्या भेदभाव पूर्ण रहा है विश्वविद्यालय ने उन पाठ्यक्रमो के Regulation राजभवन को पहले भेजे, जो उनके परिसर या सरकार के महाविद्यालयों मेचलाए जा रहे थे डॉ॰ सुलभ के संस्थान मे संचालित पाठ्यक्रमों के Regulation सबसे अंत मे भेजे गए।
इसी प्रकरण मे डॉ॰ सुलभ का दोष कहा पर है? यह किसी की समझ से बाहर है पर शासन ने उन्हे ही “परीक्षा न होने का दोषी” मानते हुए, कतिपय प्रभावशाली लोगो के निर्देश पर गिरिफ़्तार कर लिया। और इस तरह एक ऐसा नीरअपराध और महत्वपूर्ण व्यक्ति जेल मे है जिसका एक एक क्षण मूल्यवान है। साहित्य सम्मेलन सहित अनेक संस्थाओ के कार्य उनके बिना बाधित हो रहा है पर सुनने बाला कौन है?
Md Samad Ansari
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