ओवरलोडिंग पर नहीं है लगाम, ना ही सामानों की होती है चेकिंग, बिहार में बसों पर आमलोग बस भगवान भरोसे ही सफर करते हैं. बस चालक, मालिक व बस से यात्रा करने वाले यात्री हर हादसे को भूल कर वही गलती दोहराते हैं.
पटना.
मधुबनी में पिछले साल सितंबर में 23 लोगों की मौत से यदि बिहार सरकार चेत जाती तो नालंदा में शायद इतनी जान नहीं जाती. सरकार की मशीनरी ने काेई सबक भी नहीं लिया और इसी का परिणाम था कि हरनौत में यह दर्दनाक हादसा हो गया. दरअसल बिहार में बसों पर आमलोग बस भगवान भरोसे ही सफर करते हैं. बस चालक, मालिक व बस से यात्रा करने वाले यात्री हर हादसे को भूल कर वही गलती दोहराते हैं. अब राजधानी पटना का ही हाल लीजिए. राज्य मुख्यालय से विभिन्न जिलों के लिए खुलने वाली बसों में ना सिर्फ सीट से अधिक यात्रियों को बिठाया जाता है बल्कि बस की छतों पर भी बैठकर कुछ लोग यात्रा करते हैं. सामानों की तो कभी जांच ही नहीं होती है कि आखिर कौन सामान साथ में ले जाया जाता है. इसको लेकर अब तक प्रशासन ने कोई पहल नहीं किया है. इससे आने वाले दिनों में दुबारा हादसे की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
सड़कों पर नियमों की उड़ती है धज्जियां
हादसे के बाद भी बस के छतों पर बैठकर लोग बेहिचक यात्रा करते हैं. ना तो यात्री को इसमें भय हो रहा है, ना बस चालक या बस प्रबंधन ही इस पर पहल कर रही है और ना ही परिवहन विभाग ही इस पर रोक लगाने के लिये कोई कदम उठा रहा है. ऐसा नहीं कि छत पर शौक से लोग बैठते हैं बल्कि बस के अंदर सीट पर जगह नहीं रहने के कारण इन लोगों को बस के छत पर यात्रा करनी पड़ती है. छत पर ही सामान रखा जाता है और यहीं पर यात्री भी किसी तरह बैठ जाते है. कई बसों में गेट पर तो पीछे के सीढी पर भी यात्री लटक कर यात्रा करते हुए देखे जाते हैं.