शराबबंदी पर नीतीश सरकार के फैसले से मैं कंफुजिया गया हूं. खुशी मनाती महिलाओं को देखता हूं तो लगता है यह सही फैसला है फिर शराबनोश दोस्तों का चेहरा देखता हूं तो लगता है सरकार ने गलत कदम उठा लिया.
इर्शादुल हक
चुनाव की गहमागहमी और सरकार के गठन के बाद पांच दिनों तक मैं काफी बेचैन रहा. क्योंकि बहस के तमाम संभावित मुद्दे बिहार से गायब हो गये थे. हर जगह खामोशी. समाज में गहमागहमी न हो तो इसका सबसे ज्यादा असर पत्रकार बिरादरी पर दिखता है. खबरों के लाले पड़ जाते हैं. यह हाल हमारे साथ हुआ. देखते-ही देखता नौकरशाही डॉट इन की पाठक संख्या में अचानक 30 प्रतिशत की गिरावट आ गयी.
भला हो सीएम नीतीश कुमार का जिन्होंने अचानक शराबबंदी के अपने वादे को निभाने का ऐलान कर दिया. तबसे अब हर जगह, हर गली, हर नुक्कड़ और यहां तक घर आंगन में शराबबंदी के चर्चे जोरों पर हैं.
जश्न मनाती महिलायें
महिलायें जश्न मना रही हैं. पुरुषों की बड़ी संख्या खुश है. तो एक बड़ी आबादी उदासीन भी. सबके अपने-अपने तर्क हैं. शराबबंदी के समर्थकों के तर्क सुन कर लगता है कि शराबबंदी का फैसला एकदम जायज है और इस पर जल्द से जल्द अमल होना चाहिए. शराबबंदी से खुश महिलाओं की बातें सुनों तो लगता है कि नैतिक पतन के गर्त में गिरते समाज को बचाने के लिए यह जरूरी कदम था. इससे समाज के बचने और शराब पर खर्च होने वाले पैसों की बचत से समाज निर्माण में काम आने की बात सुन कर राहत मिलती है.
उदासीन वर्ग के पास जाओ और उनकी बातें सुनो तो दिमाग चकरा जाता है. वे कहते हैं शराब बिके या रुके, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. न तो शराबी कम होंगे और न ही शराब की बिक्री रुकने वाली है. ऐसे लोगों के पास जाओ तो समझ नहीं आता कि सरकार का यह फैसला सही है या गलत.
शराब के शौकीनों का दर्द
फिर जैसे ही शरबानोशी के शौकीन दोस्तों के चेहरे देखता हूं तो उन पर रहम आने लगता है. उनके चेहरे पर नाउम्मीदी और बेचारगी देख कर लगता है कि सरकार ने गलत फैसला ले लिया. उनके तर्क में दम है. वह कह रहे हैं कि नीतीश सरकार ने चुनाव के पहले शराबबंदी का जो वादा किया था, तो लगा था कि वह भी मोदी सरकार की तरह इसे जुमलाबाजी कहके टाल देंगे. पर नीतीश सरकार ने तो हद कर दी. काश नीतीश की बात जुमलाबाजी साबित हो जाये. लगे हाथ वे यह भी कह रहे हैं कि नीतीश सरकार का यह फैसला विकास विरोधी है. वह कह रहे हैं कि 3300 करोड़ रुपये का नुकसान उठाने से बाहर का विकास ठप हो जायेगा. और यह कि जो सरकार विकास विरोधी है, वह दर असल जन विरोधी है.
इन तीन किस्म के लोगों के तर्क सुन कर मैं खुद हैरान हूं. समझ नहीं आ रहा कि किस नतीजे पर पहुंचूं. वैसे फिर सोचा कि क्यों न बेखुद की गजल में इस सवाल का जवाब खोजा जाये, जो कहते हैं-
मय पिला के आपका क्या जायेगा
जायेगा ईमान जिसका जायेगा
पी भी ले दो घूट ज़ाहिद पी भी ले
मयकदे से कौन प्यासा जायेगा