पटना, २० अगस्त। राम का उल्लेख वाल्मीकि रामायण के पहले के प्राचीन साहित्य में न के बराबर है। वाल्मीकि रामायण में में श्री राम की चर्चा एक मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में हुई है। श्री राम को भगवान बनाया भक्ति–आंदोलन ने, जिसके नायक तुलसी दास हैं। गोस्वामी जी ने हीं राम को परम ब्रह्म और ईश्वर बना दिया। साक्षात मनुष्य के रूप में खड़ा कर श्री राम में ईश्वरत्व का आरोपण किया। राम को आधार बनाकर भक्ति को चारम पर ले जाने का सम्पूर्ण श्रेय संत तुलसी को जाता है और यही मानस का प्रतिपाद्य है।
यह बातें आज यहाँ प्रज्ञा–समिति द्वारा, साहित्य सम्मेलन के सभागार में ‘तुलसी जयंती पर्व पर ‘राम चरित मानस का प्रतिपाद्य‘ विषय पर आयोजित संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए, नालंदा खुला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा बिहार के पूर्व मुख्य सचिव विजय शंकर दूबे ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, तुलसी ने राम कथा के माध्यम से समाज के समक्ष एक ऐसा आदर्श रखा, जो युगों–युगों तक भारत को श्रेष्ठ बनाने रखने में सक्षम है। यह तुलसी हीं हैं, जिन्होंने आदिकवि बाल्मीकि के ‘मर्यादा–पुरुषोत्तम श्री राम‘ को ‘भगवान‘ बना दिया।
संगोष्ठी के मुख्य वक़्ता डा बलराम तिवारी ने कहा कि, तुलसी दास समग्रतावादी हैं। ये प्राचीनता और नवीनता में सामंजस्य भी स्थापित करते हैं। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित बिहार के पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा कि, ‘रामचरित मानस‘ का प्रणयन सिंद्धों की शंकाओं के निराकरण के लिए हुआ है। श्री गीता का प्राकट्य भागवान श्रीकृष्ण के मुखारविंद से कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में हुआ, जिसका उद्देश्य साधक की शंकाओं का समाधान करना था।
बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो शशिशेखर तिवारी ने कहा कि, भारत की कालजयी तपोभूमि में आविर्भूत महान युगांतरकारी मनीषी गोस्वामी तुलसीदास की कृतियाँ देश और संसार के लिए अशेष ज्योतिर्पूँज है। विशेष रूप से तुलसी दास ने राम के चरित के माध्यम से लोक–मानस को इस मानवीय जीवन के समक्ष मूल्यों का अक्षय संदेश दिया है।
इस अवसर पर अपना विचार व्यक्त करते हुए साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, संत शिरोमणि तुलसीदास युग–द्रष्टा महाकवि हैं। उनकी अमर–कृति ‘रामचरित मानस‘ एक महाकाव्य हीं नहीं, अनेक उत्प्रेरक शक्तियों से भरा , मानव–मन को प्राण देने वाला साहित्यिक इतिहास है। उनके दर्जन–भर ग्रंथ हिंदी साहित्य की अनमोल निधि है, जिनका अवलंब लेकर भारत की पीढ़ियाँ अपने मन के सारे दोषों का निवारण कर समाज में श्रेष्ठ–स्थान बनाए रखी थी। आज तुलसी और मानस से दूर होकर भारत अपनी गौरवशाली–संस्कृति और श्रेष्ठता से गिरती जा रही है। आज भी तुलसी के ‘मानस‘ में वह असीम ऊर्जा है, जिससे जैन–मन का कल्याण संभव है।डा सुलभ ने कहा कि, तुलसी ने राम कथा के माध्यम से समाज के समक्ष एक ऐसा आदर्श रखा, जो युगों–युगों तक भारत को श्रेष्ठ बनाने रखने में सक्षम है। यह तुलसी हीं हैं, जिन्होंने आदिकवि बाल्मीकि के ‘मर्यादा–पुरुषोत्तम श्री राम‘ को ‘भगवान‘ बना दिया।
इस अवसर पर अयोध्या से पधारे विद्वान डा कृपा शंकर मिश्र, डा रामाकान्त पाण्डेय, राधाबिहारी ओझा, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त क़िए।
सभा की अध्यक्षता प्रज्ञा समिति के संरक्षक राज नाथ मिश्र ने की। अतिथियों का स्वागत समिति के अध्यक्ष डा शिववंश पांडेय ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन अधिवक्ता पण्डित जी पांडेय ने किया।