बिहार में महागठबंधन को लेकर अभी भी कई पेंच फंसे हुये हैं। सबसे अहम पेंच मुख्यमंत्री पद को लेकर है।rjd.jdu.congress

अनिता गौतम, पॉलिटिकल एडिटर

मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने साफ तौर पर कहा है कि महागठबंधन का नेता चुनाव बाद तय होगा। मतलब साफ है कि अभी गठबंधन मुख्यमंत्री के मामले को चुनाव के बाद तक टालने के मूड में है। गठबंधन के सभी घटक दलों को यह आभास है कि मुख्यमंत्री के नाम पर उनके बीच घमासान छिड़ सकता है, और इस घमासान से बचने का एक ही रास्ता है कि मुख्यमंत्री का चेहरा किसी को न बनाया जाये। महागठबंधन के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती सूबे में बीजेपी को इकतरार में आने से रोकने की है। बेबाक शब्दों में कहा जा सकता है कि महागठबंधन मुख्यरूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बिहार में धूल चटाने के मूड में है।

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देश में नरेंद्र मोदी की बढ़ती हुई शक्ति, महागठबंधन के विभिन्न घटक दलों को एक किये हुये है। फिलहाल घटक दल सूबे में मिलजुल कर अपनी ताकत में इजाफा करने में लगे हुये हैं। मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और जदयू के वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह की ओर से यह साफ कर दिया गया है कि उनके नेता पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे। जदयू के तमाम नेता भी इसी गाइडलाइन पर चल रहे हैं। नीतीश कुमार को अपना नेता घोषित करते हुये सूबे में अपनी जमीन मजबूत करने में लगे हुये हैं।

महत्वकांक्षा का टकराव

जदयू निश्चित रूप से नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरेगा। उधर राजद और कांग्रेस भी अपने कार्यकर्ताओं को फेरने में लगी हुई है। कांग्रेस को दिशा निर्देश दिल्ली से मिलता है। अबतक अमूमन यही होता आया है कि दिल्ली में बैठे कांग्रेस के आलाकमान जो फैसला लेते हैं, उसी पर चलना सूबे के कांग्रेसी नेतृत्व की मजबूरी हो जाती है। इसलिए मुख्यमंत्री के मुद्दे पर अभी कांग्रेस कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं है। लेकिन राजद पर पूरी तरह से लालू यादव का नियंत्रण । लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी बिहार के मुख्यमंत्री पद पर काबिज हो चुके हैं. कानूनी कारणों से लालू इस बार आगे न आयें पर राबड़ी का इस पद पर फिर से बैठना उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा बन सकती है, और इस महत्वाकांक्षा का सीधा टकराव अगर किसी से होने की संभावना बनती दिख रही है तो वह हैं नीतीश कुमार।

इसलिए इस ओहदे तक पहुंचाने के लिए महाघटक के दोनों मजबूत घटक राजद और जदयू सीट शेयरिंग के दौरान अधिक से अधिक सीट हासिल करने की पूरी कोशिश करेंगे। यदि थोड़ी देर के लिए मुख्यमंत्री उम्मीदवार को छोड़ भी देते हैं तो सीटों के बंटवारे को लेकर महागठबंधन के अंदर घमासान मचना लाजिमी है।

स्वाभाविक है जिसके खाते में अधिक सीट आएगा, सूबे का मुख्यमंत्री उसी खेमे का होगा।

बहरहाल यदि मुख्यमंत्री का मामला चुनाव के बाद की स्थिति पर टाल भी दिया जाता है तब भी सीट शेयरिंग का पेंच तो फंसेगा ही। बीजेपी पहले से ही इस महागठबंधन को लेकर आक्रामक रूख अख्तियार किये हुये है। लालू और नीतीश कुमार की दोस्ती को अवसरवादी करार दे रही है। ऐसे में यदि सीट शेयरिंग को लेकर महागठबंधन के घटकों में घमासान मचती है तो इसका फायदा उठाने से बीजेपी नहीं चूकेगी। बेशक बिहार में महागठबंधन की राह आसान नहीं है।

By Editor

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