महाऱाष्ट्र और हरियाणा के चुनाव नतीजे बिहार के उन राजनीतिक योद्धाओं के लिए खतरे की घंटी है जो बिहार की सरजमीं पर मोदी ब्रिगेड को पटकनी देने के मनसूबे बना रहे हैं।
अनिता गौतम, पॉलिटिकल एडिटर
हरियाणा में बीजेपी अपने बूते सरकार बना रही है तो महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी के तौर उभरकर वहां के तमाम राजनीतिक दलों को पीछे धकेल दिया है। इसका कितना प्रभाव बिहार के होने वाले असेम्बली चुनाव पर पड़ेगा यह तो फिलहाल कहना मुश्किल है पर इतना तो तय है कि इसका मनोवैज्ञानिक लाभ भाजपा की बिहार इकाई को जरूर मिलेगा. वैसे जदयू के नेता और बिहार के भावी मुख्यमंत्री पद के दावेदार नीतीश कुमार महाराष्ट्र और हरियाणा में बीजेपी की सफलता को हुदहुद करार दे रहे हैं लेकिन इतना तो तय है कि मनोवैज्ञानिक रूप से बीजेपी इस वक्त काफी मजबूत है और 2015 के चुनाव में अपनी पूरी शक्ति झोंकने के लिए अभी से ही उतावली है।
अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी को लगातार सफलता मिल रही है और अब अमित शाह की पहचान एक कुशल रणनीतिकार के रूप में स्थापित हो चुकी है। अपनी पार्टी को सफलता दिलाने के लिए काफी प्रैक्टिकल एप्रोच अपनाते हैं और चुनावी फतह हासिल करने के लिए सामाजिक मैकेनिज्म को बहुत ही मजबूती से कसते हैं। इस बार बिहार में बीजेपी विरोधी खेमों को सामना अमित शाह की रणनीति से होना तय है।
राजद और जदयू बिहार के साथ भेदभाव का मुद्दा लगातार उठा रहे हैं। अभी हाल ही में राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने एक प्रेस कांफ्रेस करके बिहार के साथ भेदभाव बरतने के लिए केंद्र सरकार पर जबरदस्त हमला बोला था। जदयू तो लंबे समय से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए आंदोलनरत है ही।
इन दोनों के काट में बीजेपी की ओर से अब स्पष्ट तौर पर कहा जा रहा है कि बिहार में बीजेपी की सरकार बनाओ और विशेष राज्य का दर्जा पाओ। बीजेपी के इस मुहिम को केंद्र से भी हरी झंडी मिल चुकी है। हालांकि भाजपा इस मामले में घिर सकती है क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के नेता नरेंद्रमोदी ने केंद्र में सरकार बनते ही विशेष पैकेज देने का वादा किया
बिहार में चलेगी जाति
वैसे तो बिहार में लामबंदी जातीय आधार पर होती रही है, लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जिसे लग रहा है कि यदि वाकई में बिहार में बीजेपी की सरकार बन जाती है तो केंद्र से मिलने वाली तमाम सुविधाएं बिहार को सहजता से मिल सकती है। पूरी उम्मीद है बीजेपी के प्रचंड प्रचार अभियान से यह खेमा सहजता से बीजेपी की ओर झुक जाएगा और बीजेपी भी इस कमजोर नस पर वार करने से नहीं चूकेगी।
गठबंदन के गांठ
जदयू और राजद के नेता इस तथ्य को अच्छी तरह से समझ रहे हैं लेकिन अभी तक इसे लेकर इन लोगों के बीच कोई स्पष्ट रणनीति बनती नहीं दिख रही है। महागठबंधन पर बड़े दिग्गज नेता अभी भी एक दूसरे के खिलाफ जहर उगलने में लगे हैं। महाराष्ट्र और हरियाण के चुनाव नतीजों से सबक लेने को तैयार नहीं है। महागठबंधन के अंदर घात और प्रतिघात की राजनीति जोरों पर है और यदि महागठबंन के योद्धा नहीं संभले तो इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है।