लार्ड महावीर की ढाई हजार वर्ष पुरानी मूर्ति चोरी होने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मची खलबली संतोष में बदल गयी है पर क्या पुलिस चोर गिरह का पर्दाफाश कर पायेगी? मूर्ति की बरामदगी की पेंच दर पेंच की कहानी और जांच एजेंसियों के भूलभुलैये की पूरी दास्तान पढ़िये.
मुकेश कुमार, पूर्वी बिहार ब्यूरो
जब भगवान महावीर की मूर्ति चोरी हुई तो पुलिस महकमे में हाय तौबा मच गई थी।और जब मूर्ति की बरामदगी हुई तो मामले के उदभेदन से जुड़े तथ्यों पर पुलिस ने चुप्पी साध ली ।
जब सिकंदरा थाना क्षेत्र के विछ्वे – हुसैनीगंज संपर्क पथ पर भगवान महावीर की मूर्ति को चोरो ने लावारिस अवस्था में फेक दिया तो उस वक्त उस घटनास्थल पर एसआईटी ,डॉग स्कवायड ,एफएसएल जैसी अहम जाँच टीमों को क्यों नहीं लगाया गया ? ऐसा इसलिए कि यह घटना व मुश्किल से आठ से दस घंटे की रही होगी और अगर डॉग स्कवायड का दस्ता यदि आता तो किसी नतीजे पर अवश्य ही पहुँच जाता !
जहां पुलिस चूक गयी
सूत्रों की माने तो अंतराष्ट्रीय बाजार मूल्य की तुलना में जितनी भगवान बुद्ध की प्रतिमा की मांग है उतनी भगवान महावीर की नहीं ।गौरतलब है कि घटनास्थल से जुड़े तथ्यों को सुरक्षित रखने की बजाय आनन फानन में मूर्ति को घटनास्थल से उठा लेना भी पुलिस की भारी चुक थी ।
क्या सीबीआई चोर गिरोह तक पहुँच पाएगी ?
यह भी अपने आप में एक बड़ी बात होगी । 48 घंटे बीत जाने के बाद भी मूर्ति बरामद स्थल पर सुरक्षा एजेंसी की जाँच टीम डॉग स्कवायड आदि नहीं पहुँच पाना ।आखिर पुलिस के चोर गिरोह तक पहुँचने के लिए अंधेरे में तीर चलाने जैसी बात होगी। मूर्ति को विछ्वे हुसैनीगंज संपर्क पथ में लाकर फेका जाना।यह अहम सवाल खड़ा कर रहा है कि चोर उक्त मूर्ति को कहीं अन्यत्र भी फेक सकते थे ।परन्तु ऐसा उन्होंने क्यों नहीं किया इससे कयास लगाया जाता है कि जमुई नवादा मुख्य सड़क मार्ग का इस्तेमाल चोर गिरोह के सरगनाओ के लिए महफूज रहा होगा ।लगभग ढाई क्विंटल के भारी भरकम इस मूर्ति को रखने के लिए किसी चार पहिये के डिक्की का इस्तेमाल किया गया होगा ।और उसे उतारने के लिए भी तक़रीबन आठ से दस लोगों की मदद ली गई होगी। आपको बता दें कि उक्त घटनास्थल पर उक्त मूर्ति के समीप दो जूट के बोरे भी पाये गए थे जो भारतीय खाद्य निगम के पैकिंग के लिए प्रयुक्त होते हैं ।अगर इन बिंन्दुओ पर ध्यान दें तो जूट के बोरे से भी मूर्ति चोरी का राज खुल सकता है.
जूट की बोरी से खोलिए राज
इस मामले की जाँच सीबीआई ऐसे साक्ष्यों को लेकर भी अपने अनुसंधान को नई दिशा दे सकती है ।गौरतलब है कि ऐसे जूट के बोरो पर सहकारी समिति के द्वारा इस्तेमाल किये जाने से सम्बंधित प्रक्रिया की जानकारी बोरे पर अंकित रहा करती है ।क्या पुलिस ने जूट के बोरे को साक्ष्य के लिए सही ढंग से जब्त करके रखा है या उसे यूँ ही थाने के किसी कबाड़खाने में फेक करके मामले की इति श्री कर डाली ?
गंभीरता की कमी
सवाल यह उठता है कि जिस तरह से मूर्ति की चोरी को लेकर पहले पुलिस के आलाधिकारियो में संजीदगी बनी हुई थी और एक एक पहलू पर बारिकी से जाँच करवायी जा रही थी ।काश मूर्ति बरामद होने के घटनास्थल पर भी ऐसी ही संजीदगी और जाँच के बारिकी के पर गौर फरमाया गया तो पुलिस को चोर गिरोह के सरगनाओ तक पहुँचने में एक हद तक सफलता मिल सकती थी।