बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांंझी लंदन के लिए रवाना हो गये हैं. व्याख्यान देने. लेकिन यहां पढ़िये जो अब तक इस बारे में आपको मालूम ही नहीं है.
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
वह वहां इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर में व्याख्यान देंगे. यह इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर है क्या? आज पढिये इस ग्रोथ सेंटर के बारे में.
अगर अप इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर की वेबसाइट पर जायेंगे और न्यूज क्लिपिंग्स सेक्शन को क्लिक करेंगे तो एक लेख मिलेगा. इसके लिखने वाले खुद ग्रोथ सेंटर के निदेशक हैं. नाम है- रॉबिन बर्गेस. बर्गेस ने इसे बतौर पत्र लिखा है. यह पत्र किसे लिखा है यह अस्पष्ट है. क्योंकि पत्र की शुरुआत करते हुए कुछ यूं लिखा है- डियर… फर्स्ट नेम
पढ़ें मांझी का इंटर्व्यू
फर्स्ट नेम कोई भी हो सकता है. लेकिन आप जैसे-जैसे इस पत्र को पढ़ते हुए आगे बढ़ेंगे उसमें बिहार के दो नौकरशाहों की तारीफ मिलेगी. एक हैं. संदीप पौड्रिप और दूसरे हैं प्रत्यय अमृत. पौड्रिक और अमृत दोनों वही आईएएस अफसरान हैं जिन्हें बिहार के बिजली महकमे में काम किया है. खैर बर्गेस ने इन दोनों नौकरशाहों की कमिटमेंट की तारीफ की है. पत्र में उन्होंने अपने कुछ सहयोगियों और खुद अपना जिक्र करते हुए लिखा है कि माइकल ग्रीनस्टोन, अनंत सुदर्शन और मैंने बिहार के ऊर्जा सेक्टर पर काफी काम किया है.
बिहारी एनजीओ कनेक्शन
इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर की एक सच्चाई यह है कि यह बिहार के एक एनजीओ से जुड़ा एनजीओ है. यह एनजीओ है पटना का आद्री. इसी का कैम्पस इसका होस्ट भी है.
इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर लंदन के लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स और ऑक्सफोर्ड विश्विद्यालय में काम करने वाला सेंटर है. यह सेंटर विकासशील देशों यानी भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, रोवांडा सुडान आदि में विकास के कार्यों में सहोयग करने का दावा करता है. इसके लिए इंग्लैंड के डिपार्टमेंट ऑफ इंटरनेशनल डेवलपमेंट से फंड मिलता है. इसकी शुरुात मात्र पांच साल पहले यानी 2008 में की गयी.इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर यानी आईजीसी भारत के किसी गैरसरकारी संस्थान यानी एनजीओ की तरह है जो रिसर्च का काम करता है. ऐसे एनजीओ भारत और यहां तक कि बिहार में भरे पड़े हैं. फर्क यह है कि भारत के ज्यादातर एनजीओ खाऊ-कमाऊ होते हैं जबकि आईजीसे के बारे में कुछ ऐसा नहीं है. हालांकि आईजीसी की पांच साल की उम्र के हिसाब से उसकी उपलब्ियां भी कुछ ऐसी नहीं जिसे गिनायी जा सके.
आईजी से के निदेशक रॉबिन बर्गेस हैं.जो कई बार बिहार आ चुके हैं. वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर हैं. उनकी बातों, और उनके लेख से पता चलता है कि उन्होंने ऊर्जा के क्षेत्र में बिहार में कुछ देने के बजाये खुद बिहार से ही सीखा है. जिस पत्र का हवाला ऊपर दिया गया है उस पत्र की भाषा से तो ऐसा ही लगता है. आईजी से के बारे में पहुत कम लोगों को पता है कि उसका एक सेंटर बिहार में पटना में भी है. इस सेंटर ने बिहार में 2010 में अपना ब्रांच खोला. आईजीसी का बिहार ब्रांच बिहार में बाढ़ और विकास पर उसके पड़ने वाले प्रभावों पर रिसर्च कर रहा है. फैक्ट्स बताते हैं कि आईजीसी को बिहार में होस्ट करने वाला एनजीओ कोई और नहीं बल्कि आद्री है. यह आद्री वही एनजीओ है जिसके सदस्य सचिव शैबाल गुप्ता है. शैबाल गुप्ता की बिहार सरकार में अच्छी पैठ मानी जाती है.
हालांकि इस बात की जानकारी नहीं है कि यह केंद्र अपने रिसर्च के लिए बिहार सरकार से फंड लेता है या खुद अपने फंड से काम करता है. कुछ फैक्ट तो यह भी है कि बिहार के एनजीओ सेक्टर के कुछ दिग्गज भी इस सेंटर से जुड़े हैं.
मीठा सपना
कुल मिला कर मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की लंदन यात्रा कोई ऑफिसियल यात्रा नहीं है. यह एक गैरसराकारी संगठन के बुलावे पर की गयी यात्रा है. गैरसरकारी संगठनों के बुलावे पर किसी राज्य के मुख्यमंत्री तो जाते ही रहते हैं. बिहार के कई गैरसरकारी संगठन भी मुख्यमंत्री को बुलाते हैं. लेकिन जिस तरह से बिहार के मीडिया ने जिस तरह से मांझी की लंदन यात्रा को प्रोजेक्ट किया है वह चकित करने वाला है. कई अखबारों और चैनलों ने तो यहां तक कहते हुए बताया है कि मांझी की इस यात्रा से बिहार में इंग्लैंड से निवेश के दरवाजे खुलेंगे. यह एक मीठे सपने की तरह की बात है.
हां इतना हो सकता है कि मांझी बिहार के, इंग्लैंड में रहने वाले कारोबारियों से कहें कि वह बिहार में अपना कारोबार करें. अब इसे भी निवेश की संज्ञा दी जाये तो देने वालें दें. पर सच्चाई यह है कि हमें किसी बड़े निवेश के सपने, इस यात्रा से पालने की जरूरत नहीं है.