नौकरशाही डॉट इन को पता चला है कि जीतन मांझी को दलित संगठनों और नौकरशाहों ने रैली के लिए आर्थिक मदद दी तो दूसरी तरफ कुछ दबंग व चतुर नेताओं ने लाखों रुपये गड़क लिये.
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
इतना ही नहीं जिन नेताओं ने पैसों और संसाधनों को गड़क लिया, वे न तो दलित स्वाभिमान रैली के स्टेज पर दिखे और न ही उनके लोग सामयाने में. मांझी की कोर टीम ऐसे नेताओं के रवैये से आहत है. आहत होने की एक दूसरी वजह यह भी है कि जो लोग दिन-रात जीतन राम मांझी को आश्वस्त कर रहे थे कि पटना की रैली में हजारों-हाजर उनके कार्यकर्ता होंगे, पर रैली में जुटी कम भीड़ का हाल यह था कि मंच संचालक वृशिषण पटेल बार-बार उद्घोषणा करते दिखे कि इस भीड़ा को कम न आंका जाये क्योंकि जितने लोग आये हैं उनमें से हर एक दस की नुमाइंदगी कर रहा है.
गरीब स्वाभिमान रैली के जरिये जीतन राम मांझी ने जो संदेश देना चाहा वह तो दिया लेकिन यह भी स्पष्ट हो गया कि उन्होंने इस रैली से जो सबक सीखा वह राजनीतिक प्रबंधन और बढ़बोले नेताओं को पहचानने का सबक था. वह कुछ बढ़बोले और कमाऊ नेताओं की चिकनी बातों में ऐसे फंसे कि उनका हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा दंग रह गया.
इससे पहले मांझी के सामने रैली और संगठन की गतिविधियों को संचालित करने के लिए आर्थिक संसाधन बड़ी चुनौती थी. इससे जुड़े एक सवाल के जवाब में रैली से पहुत पहले उन्होंने कहा भी था कि वह लोगों से चंदा लेंगे.
खबर तो यहां तक है कि कई नौकरशाहों, दलित संगठनों और दलित कारोबारियों ने मांझी को दिल खोल कर चंदे दिये भी. लेकिन कुछ एक नेताओं ने मांझी को संगठन की मजबूती, अन्य राजनीतिक दलों से बातचीत, मांझी के संग खड़े हो कर उनके पक्ष में बयानबाजी करके माहौल बनाने और रैली में भीड़ा लाने का आश्वासन दिया.
लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला. हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के नेता इस झटके से आहत हैं. लेकिन इस दर्द को वे किसी से बांटने के पोजिशन में भी नहीं है. आखिर वे ऐसी बातें कहें तो किस से कहें?