‘मुख्यमंत्री के सरकारी आवास एक अण्णे मार्ग में लगने वाला दरबार जनता का दरबार है या राजा का। राजा का मन जब लाया, तब लगाया और जब मन नहीं आया, दरबार में आने वालों को सड़क पर टहलने के लिए छोड़ दिया।’ यह नाराजगी उस व्यक्ति की है, जो सोमवार को जनता दरबार में फरियाद लेकर पहुंचा था और यहां आने पर मालूम पड़ा कि दरबार स्थगित कर दिया गया है। क्या मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के लिए जनता दरबार औचित्यहीन या महत्वहीन है।
बिहार ब्यूरो
सीएम आवास में करीब दो माह बाद पिछले सोमवार को ‘जनता के दरबार मुख्यमंत्री’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, लेकिन आज लगने वाला जनता दरबार स्थगित कर दिया गया था। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इसकी सूचना अखबारों में दी गयी थी। लेकिन सवाल यह है कि एक दिन लगाकर अगली बार कार्यक्रम स्थगित ही कर देना था तो दरबार लगाया ही क्यों गया था। अगर सरकार के लिए जनता दरबार महज औपचारिकता मात्र है तो उसका आयोजन किया क्यों जाता है।
आज सुबह से जनता दरबार के लिए सैकड़ों लोग मुख्यमंत्री आवास के पास पहुंच रहे थे, तब उन्हें सूचना दी जा रही थी कि कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया है। सर्कुलर रोड पर बीपी मंडल की प्रतिमा पास काफी थके-हारे लोग बैठे थे। दरभंगा, मोतिहारी, कैमूर समेत विभिन्न जिलों से पहुंचे फरियादियों के पास घर लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। रात भर की यात्रा के बाद सीएम से मिलने का आस लेकर पहुंचे लोग निराश थे। कुछ लोग मुख्यमंत्री सचिवालय में अपना आवेदन देकर लौट रहे थे तो अधिकांश उल्टे पाव स्टेशन या बस स्टैंड की ओर जा रहे थे। कुछ लोग अपनी भड़ास सरकार पर उतार रहे थे तो कुछ मन मारे अगली बार मिलने की उम्मीद लगाए लौट रहे थे।