आम तौर पर बिहार के खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री श्याम रजक के तेवर इतने तल्ख नहीं होते. वे दलित समाज से आते हैं पर दलितों की ऐसी चिंता उनमें पहले शायद ही देखी गयी. कुछ लोग इसे मुख्यमंत्री मांझी इफैक्ट के तौर पर देख रहे हैं.
श्याम रजक ने दलित बच्चों के एक कार्यक्रम में आक्रमक तौर पर कहा कि दलितों के अंदर जवाला पैदा करना होगा और अपनी कुंठाओं को दूर करना होगा। अपने पूर्वजों को याद करें और उनसे अन्याय के खिलाफ गुस्से का इजहार करना सीखें। खून का घूट पीकर चुप रहने की जरूरत नहीं है।
खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री श्याम रजक ने सेन्टर फॉर सेाशल इक्यूटी एण्ड इंक्लुजन संस्था द्वारा आयोजित राष्ट्रीय कंसलटेन्सी कार्यक्रम में उपस्थित दलित बच्चे एवं युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि दलितों के लिए शिक्षा जरूरी है न कि वेद पुरान और मनुवादी मंत्र। हमारे लोग भी आजादी की लड़ाई लड़े थे। अंग्रेजों के कोड़े से लहुलूहान हुए थे। लेकिन सम्पूर्ण इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में हमारे पूर्वजों का नाम अंकित क्यों नहीं है ? इस पर गंभीरता से सोंचना होगा।
दरअसल हमारा समाज शिक्षित नहीं था। मनुवादी सोंच के इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों की आहूती को भूला दिया। संविधान में जो बाते लिखी गई है उसके अनुसार दलितों को अधिकार आज तक क्यों नहीं मिला। सरकारी योजनाएं तो बहुत है लेकिन 60-65 वर्षो के बाद उसका लाभ नहीं मिल रहा। क्योंकि गुस्सा करना हमनें छोड़ दिया है।
आरक्षण नियम का पालन नहीं
आज की परिस्थति में गुस्सा को पीने के बजाए गुस्से को इजहार करना जरूरी है। हमारे लिए शिक्षा मूलमंत्र होना चाहिए। शिक्षा के द्वारा ही सारी कुरीतियों से लड़ सकते हैं। योजनाये ंतो दलितों के लिए बहुत बनती है लेकिन उनके घरों तक नहीं पहूंचती है। आखिर क्या कारण है। क्योंकि हम जागरूक नहीं हैं। दलित समाज को सबसे पहले अपने अंदर के वर्गीकरण को खत्म करने की जरूरत है। शिक्षा , स्वास्थ्य , ब्यूरोक्रेसी , न्यायिक व्यवस्था में हमारे दलित भाइयों की संख्या सम्मानजनक क्यों नहीं है। आरक्षण के नियमों का अक्षरशः पालन आज भी नहीं हो रहा है।
नहीं मिल पाती छात्रवृत्ति
अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष विद्यानंद विकल ने संबोधित करते हुए कहा कि जो बच्चे एवं युवा सार्क सम्मेलन शामिल होने जा रहें हैं उन्हें दलितों के एजेंडे को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रखना होगा। स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए सरकार करोड़ो रूपये प्रति वर्ष भेजती है। व्यवस्था ऐसी है कि उसे छात्रवृति का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है। श्री विकल ने यह भी कहा कि छात्रों का 75 प्रतिशत उपस्थिति नहीं होने के पीछे दोषी शिक्षक हैं न कि छात्र।
दलित सरकारी स्कूलों में
देश के विभिन्न राज्यों से आए दलित बच्चों एवं युवाओं को संबोधित करते हुए पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विनय कंठ ने कहा कि बदलते वक्त के साथ दलितों के साथ भेदभाव का स्वरूप बदला है। सरकारी स्कूल कालेजों में जहां दलित बच्चे एवं युवाओं की संख्या बढ़ रही है वहीं दुसरी ओर गैरसरकारी संस्थानों में जनरल केटेगरी के बच्चों की संख्या बढ़ रही है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थनों के शिक्षा के स्तर में काफी असमानता है। प्राइवेटाइजेशन के इस दौर में जिसे क्वालिटी एजुकेशन मिलेगा वही रोजगार भी पाएगा। आज जरूरत इस बात की है कि सरकारी व दलितों के स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन दी जाए। ताकि गैर बराबरी को दूर किया जा सके है। लेकिन यह लड़ाई इतनी आसान है। इसके बड़ी लड़ाइ्र की तैयारी करने की जरूरत है।
इस कार्यक्रम में प्रतिमा ने दलित महिलाओं के साथ-साथ जाति व्यवस्था पर प्रकाश डाला। दिल्ली से आई सुनीता ने कहा कि दलितों की नई पीढ़ी के पास क्षमता है उसे जरूरत है कि नई दिशा देने की। अंबेडकर निर्माण दलित मंच के अध्यक्ष उपेन्द्र कुमार मांझी ने ग्रामीण युवा के समस्याओं पर प्रकाश डाला।
इन सभी वक्ताओं अलावे प्रेक्सििस संस्था के अरविंदो बनर्जी, दलित अधिकार मंच के कपिलेश्वर राम , राईटस (केरला) से आये अजय ने भी दलितों के सवाल पर प्रकाश डाला।
सार्क सम्मेलन के लिये रवाना
सेन्टर फॉर सेाशल इक्यूटी एण्ड इंक्लुजन संस्था ने देश के विभिन्न राज्यों के 35 बच्चे एवं युवाओं की टीम को काठमांडु रवाना किया। 22 से 24 नवंबर तक चलने वाले सार्क सम्मेलन में दलित बच्चे एवं युवा सम्मान, समान अधिकार और सामाजिक न्याय के सवालों को रखेगें। इनका उदेश्य समाज में सम्मान ,समान शिक्षा ,समान रोजनगार पाना और राजनीति के क्षेत्र में अपना अलग मुकाम तय करना है।
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