गुप्तांग में पेट्रौल डालना फिर मिर्च का पावडर उडेल देने का मकसद यही है कि तेल की तरलता से मिर्च की जलन चरम पर पहुंच जाये. बीते दौर के तानाशाहों ने भी ऐसी निर्ममता नहीं दिखाई होगी.
पर यह हैवानियत जमुई के थानेदार जीतेंद्र कुमार और गिद्धौर के थानेदार सत्यब्रत भारती ने 30 वर्षीय मुन्ना कुमार के साथ की.
लोकतांत्रिक समाज को कलंकित करने वाली और दिल को दहलाने वाली यह घटना कितनी पीड़ादायक रही होगी, अब तो इस घटना को बयान करने के लिए मुन्ना जिंदा भी नहीं हैं.
मुन्ना पर आरोप था कि वह व्यवसायी बैकुंठ वर्णवाल के अपहरण में कथित रूप से शामिल थे. यह आरोप सच है या झूठ इसकी तफतीश अपनी जगह है पर मुन्ना के साथ जिस तरी का व्यवहार किया गया क्या यही व्यवहरा इन थानदारों के बेटों, या खुद उनके साथ किया जा सकता है? क्योंकि अगर मान भी लिया जाये कि मुन्ना ने अपहरण किया था ( जो कि सच नहीं भी हो सकता है) तो इन थानेदारों ने तो मुन्हना से भी बड़ा अपराध किया है, उनकी हत्या करके.
TrulyShare
हमारे समाज में वर्दी से घृणा करने की वजह खोजने की जरूरत नहीं है. समाज का शायद ही कोई आदमी हो जो वर्दीधारियों से सहानुभूति रखता हो. हालांकि ज्यादातर वर्दीधारी इतने निर्मम नहीं होते. और ऐसे वर्दी वाले जांबाज अफसर भी हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर समाज में शांति कायम करने का बीड़ा उठाते हैं. पर पुलिस की छवि ऐसे कलंकित अधिकारियों से ही निर्धारित होती है.
ये भी पढें-गुप्तांग में डंडा पहले भी ठूसा था
वर्दी को कलंकित करने वाली यह पहली घटना नहीं है. इसी वर्ष जनवरी में शेखपुरा के तत्कालीन एसपी बाबू राम के ऊपर भी ऐसी हैवानियत के आरोप लगे थे. उनपर आरोप लगा था कि उन्होंने एक शराब व्यवसायी मुकेश कुमार को बेरहमी से न सिर्फ पीटा बल्कि उनकी पुलिस टीम ने मुकेश के गुप्तांग में डंडा तक ठूस दिया था.
इस घटना के बाद आरोपी पुलिसकर्मियों को निलंबित करने की खानापूर्ति की गयी थी. बाबू राम आईपीएस हैं इसलिए उन्हें निलंबित करने की प्रक्रिया आसान नहीं.
पर सवाल यह है कि वर्दी पहनते समय जो अधिकारी समाज में अमन-शांति बनाने की शपथ लेता हो वही अमन का सबसे बड़ा दुश्मन साबित हो जाये तो फिर क्या होगा?
हमारी सरकारों के पास पुलिस को मानवीय बनाये रखने का कोई एजेंडा नहीं दिखता. मुन्ना या मुकेश की घटना तो इसलिए सामने आ जाती हैं कि यह अति है. पर ऐसे सैंकड़ों उदाहरण हैं जो सामने नहीं आ पाते.
ऐसे में पुलिस बल की सूरत बदलने पर विचार करने की जरूरत है. हमारी पुलिस या तो थर्ड डिग्री का प्रयोग करने के लिए कुख्यात है या फिर फेक एनकाउंटर में लोगों की हत्या करने के लिए.
ऐसे खूनखार पुलिस अधिकारियों को न सिर्फ मुनासिब सजा मिलनी चाहिए बल्कि उनके जिस्म पर फिर कभी वर्दी न चढ़े, ऐसे उपाय किये जाने चाहिए.
Comments are closed.