राजद प्रमुख लालू यादव पर सीबीआई का ग्रहण वर्षों से लगा हुआ है। सीबीआई जांच उनकी राजनीतिक को काफी प्रभावित किया है। लालू यादव के खिलाफ जांच की पहली छाया 1993 में पड़ी थी। एक वरिष्‍ठ प्रशासनिक अधिकारी ने अपने पुराने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि लालू यादव के व्‍यवहार से नाराज अधिकारियों ने उन्‍हें सीबीआई जांच के फेर ऐसा उलझाया कि उससे वे निकल नहीं पाये।

वीरेंद्र यादव   

1993 में नेता प्रतिपक्ष जगन्‍नाथ मिश्र ने ‘मार्च लूट’ पर जमकर हमला बोला और सरकार पर अवैध निकासी के आरोप भी लगाये। सत्‍ता के गलियारे में मार्च लूट का मतलब है वित्तीय वर्ष के आखिरी महीने मार्च में होने वाली धड़ाधड़ निकासी। मार्च को राजनीति में सक्रिय नेताओं और कार्यकर्ताओं के वित्‍त पोषण का महीना भी माना जाता है।

 

जगन्‍नाथ मिश्र के आरोप के बाद उसी वर्ष 8 अप्रैल को सरकार ने सभी विभागों की निकासी को लेकर समीक्षा बैठक बुलायी। समीक्षा बैठक में तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री लालू यादव के साथ सभी विभागों के वरीय अधिकारी भी मौजूद थे। इस समीक्षा बैठक में सिमडेगा जिले में पशु पालन विभाग में एक करोड़ से अधिक की अवैध निकासी का मामला उजागर हुआ। इसके बाद जांच का दायरा बढ़ता गया और मामला सीबीआई जांच तक पहुंच गया। सीबीआई के कई अधिकारी लालू प्रताड़ना के शिकार थे। उन्‍होंने एक के बाद एक मामले में लालू यादव को फंसाते गये और डोर इतनी लंबी होती गयी कि लालू की पूरी राजनीति उसी में उलझ कर रह गयी है।

By Editor


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