पिछले दो – तीन दिनों से बिहार के अरवल ज़िला में दो समुदाय के बीच काफ़ी तनाव है और इसी बीच एक क्षेत्रीय टीवी चैनल द्वारा भ्रामक ख़बर फैला कर पूरे इलाक़े मे सनसनी फैला दी गई है. वह खबरिया चैनल अपने एक ख़बर में दावा करता है कि अरवल के शाही मुहल्ले से बड़ी तादाद में राकेट बम बरामद किया गया है. साथ ही बिजली मिस्त्री समेत छ: लोगों को इस सिलसिले में गिरफ़्तार भी किया गया है. लेकिन आप जब इस ख़बर के तह तक जाएंगे तो सच्चाई कुछ और मालूम होगी.
नौकरशाही ब्यूरो
जहानाबाद से निकलने वाले एक हिंदी दैनिक ने 3 अक्टूबर को अरवल के डी.एस.पी शैलेंद्र कुमार के हवाले से शाही मुहल्ले से बम व कुछ कारतूस ज़ब्त होने की ख़बर प्रकाशित की. इसके अलावा उस अखबार में तीन लोगों की गिरफ्तारी की भी बात की गई. वहीं खबरिया चैनल ने अरवल के शाही मुहल्ले से राकेट बम बरामदगी खबर को बिना किसी बड़े प्राशासनिक अधिकारी के हवाले दिए ही बड़े ही भड़काऊ अंदाज़ में परोस रहा है. जबकि उनके पास न तो ऐसी कोई वीडियो है, जिसमें हथियार दिखाए जा रहे है और न ही ज़िला के किसी बड़े प्राशासनिक अधिकारी का स्टेटमेंट.
ऐसे में एक सवाल खड़ा होता है कि आख़िर बरामद किया क्या गया है ? उधर उस संदेहस्पद ख़बर वाले फुटेज को लोगों द्वारा वाट्सएैप और फ़ेसबुक पर वायरल किया जा रहा है. जो बेहद खतरनाक है. वहीं, पुलिस अधीक्षक के हवाले से एक वेबसाईट ने भी लिखा है कि चार पेट्रोल बम भी बरामद किये गए हैं. तीन अक्टूबर को इसी ख़बर को आधार बना कर भाजपा के पूर्व विधायक के शह पर बड़ी तादाद में लोगो ने अरवल बज़ार में सड़क पर उतर कर समुदाय विशेष पर विरोधपूर्ण और आपत्तिजनक नारा लगा कर माहौल ख़राब करने की कोशिश की गई.
साथ ही समुदाय विशेष के दुकान को चुन-चुन कर नुक़सान पहुंचाने की कोशिश गई, जिसके बाद पुलिस द्वारा निषेधाज्ञा लागू किया गया. कुछ लोगो को गिरफ़्तार भी किया गया. इससे पूर्व पुलिस की मौजूदगी में एक दिन पहले 2 अक्टूबर को शाही मुहल्ले से लेकर फ़रीदाबाद तक मौजूद समुदाय विशेष के घर और दुकान को जुलुस में शामिल दंगाई भीड़ द्वारा चुन चुन कर निशाना बनाया गया था. हालांकि इस पूरे मामले में पुलिस एहतियात बरत रही थी कि कोई भी अफ़वाह फैल न पाए. इस लिए प्रशासन द्वारा अरवल ज़िला में इंटरनेट सेवा बंद कर दिया गया था.
इसके बाद में मामला कंट्रोल में था, लेकिन अचानक खबरिया चैनल द्वारा चलाए गए भड़काऊ ख़बर ने मामले को और तूल दे दिया. वहीं, जब तक इंटरनेट बंद रहा, तब तक अफ़वाह नहीं फैला, लेकिन जैसे ही इंटरनेट को वापस शुरु किया गया, फ़ेसबुक और वाट्सअप के माध्यम से भड़काऊ पोस्ट शेयर होना शुरु हो गया. इससे समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक बाते लिखी जाने लगी.
औरंगाबाद के रहने वाले अमरेश कुमार यादव ने एक फ़ेसबुक पोस्ट पर कमेंट करते हुए लिखा है कि उन्हें ये उसी दिन मालूम चल गया था, जब वो लोग पटना से अरवल होते हुए औरंगाबाद लौट रहे थे. प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ था. संगठन विशेष द्वारा गंदा-गंदा नारा लगवाया जा रहा था. उन्होंने उस दिन इस बात का ज़िक्र भी अपने साथी से भी किया था कि ये लोग लड़ाई लगवाएगा और वैसा ही हुआ. कुल मिला कर मामला पुलिस की चूक, सत्ताधारी दल के नेता की शह व साजिशों के साथ मीडिया द्वारा फैलाए गए ग़लत ख़बर की वजह से भड़का है.
अगर इतिहास पर नज़र डालें तो पता चलता है कि अरवल प्रेम से भरा इलाक़ा रहा है, जहां हर कोई एक – दूसरे के प्रति दिलों में नफ़रत नहीं प्रेम रखते हैं. आज अरवल चंद लोगों के बहकावे में आ कर अपने भाईचारे को नष्ट कर रहा है. ध्यान रहे कि कुछ माह पूर्व रामनवमी पर्व के जुलूस को बड़े ही शांति प्रिय ढंग से अंतिम विराम दिया गया था. अरवल के शाही मुहल्ले के मुस्लिम परिवारों ने रामनवमी के जुलूस में आए राम भक्तों के बीच पानी और शरबत बांटे थे. ज़रुरत इस बात की है कि नफ़रत को ख़त्म कर और भाईचारे को मज़बूत किया जाय.